जिन खोजा तिन पाइयां

इस ब्लॉग में विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं के उत्तर देने की कोशिश की जाएगी। हिन्दी साहित्य से जुड़े कोर्सेस पर यहाँ टिप्पणियाँ होंगी,चर्चा हो सकेगी।

Monday, 6 June 2011

नए सत्र में स्वागत!

आप लोग जून 2011 से एम.ए पाठ्यक्रम के तीसरे सेमिस्टर मे प्रवेश करेंगे। मैं जानती हूँ अभी आप में से कई लोग सोचेंगे कि अभी पहले सेमिस्टर का तो परिणाम आया नहीं, दूसरे का तो आते-आते आएगा, और आप तीसरे सेमिस्टर में स्वागत कर रही हैं। देखिए, स्वागत तो मुझे करना ही है आप सबका क्योंकि चाहे परिणाम अभी आया नहीं है, पर जब आएगा अच्छा ही आएगा। इस नए सेमिस्टर का पाठ्यक्रम भी क्रमशः मैं आपके लिए ब्लॉग पर रखूंगी ही, परन्तु मुझे लगा कि इस सत्र के पाठ्यक्रम के विषय में कुछ प्रारंभिक बातें हो जाएं।
पिछले दोनों सेमिस्टर में अपके पाठ्यक्रम की पहचान 4 से होती थी। अब अगले दोनों सेमिस्टर में अपके पाठ्यक्रम 5 से पहचाने जाएंगे। अर्थात् सेमिस्टर तीन में आप 501 से 506 तक के पाठ्यक्रम पढेंगे। इस पाठ्यक्रम में आप इतिहास, काव्यशास्त्र तो पढेंगे ही, पर साथ ही प्रयोजनमूलक हिन्दी, दलित/महिला लेखन, तुलनात्मक/विश्व/ प्रादेशिक/प्रवासी/ आदि के चुनाव से रू-ब-रू होंगे। इस बार सेमीनार के कोर्स में हमने जो यूनिट्स डाले हैं उसमें आपके पास विशेष अवसर रहेगा। आपने अब तक जो पढ़ा है अथवा आपके भीतर जो कल्पनाशीलता है उसे अवर मिलेगा कि वह अभिव्यक्त हो। आप को शायद आपके अध्यापकों ने बताय होगा कि अब सेमीनार के कोर्स में अंकों का आबंटन अन्य कोर्स की तरह 70/30 का रहेगा। अर्थात् 70 का बाह्य परीक्षण एवं आंतरिक का 30 अंकों का परीक्षण। प्रस्तुति के लिए शब्द संख्या यथावत रहेगी।
इस वर्ष ऐसे अनेक कोर्स दाखिल किए हैं कि जिन्हें अगर आप ध्यान से सीखेंगे तो यह आपके लिए आजीविका की बेहतर क्षमता प्राप्त करने का अवसर होगा। समय के साथ चलते हुए हमारे विश्वविद्यालय ने हिन्दी का अद्यतन एवं व्यापक पाठ्यक्रम दाखिल किया है। हमारी यह ब्लॉग शिक्षा पद्धति भी उसी नवीनीकरण का एक हिस्सा है। मैं जानती हूँ कि आप लोग लाभान्वित तो हुए हैं। परन्तु आप लोगों की तरफ से जितनी भागीदारी अपेक्षित है, उतनी मिल नहीं रही। मुझे विश्वास है कि इस वर्ष आप अवश्य इसमें अपनी भागीदारी करेंगे।
इस वर्ष का काव्य शास्त्र का पाठ्यक्रम एक तरह से अपनी प्रकृति में तुलनात्मक है। काव्यालोचन के जितने प्रमुख घटक हैं उन पर हम एक साथ भारतीय तथा पाश्चात्य चिंतकों को पढेंगे। जैसे रस-निष्पत्ति तो अपने आप में विलक्षण है। उसके बराबर पाश्चात्य साहित्य में कुछ नहीं मिलेगा। अतः उसे एक अलग यूनिट दिया है। इसके बाद काव्य की समझ के लिए सौन्दर्य, भाषा और छन्द ज़रूरी है, साथ ही सृजन प्रक्रिया । अतः भारतीय तथा पाश्चात्य काव्य-शास्त्र में कौन से समान बिन्दु हो सकते हैं उसके कुछ अंश को हमने लिया है। सारा लेना तो कठिन ही है। इस समझ के साथ आप यह कोर्स पढेंगे , तो आपके लिए इस पाठ्यक्रम को पढ़ना सरल होगा।
इस बार इतना ही , शेष बाद में।