जिन खोजा तिन पाइयां

इस ब्लॉग में विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं के उत्तर देने की कोशिश की जाएगी। हिन्दी साहित्य से जुड़े कोर्सेस पर यहाँ टिप्पणियाँ होंगी,चर्चा हो सकेगी।

Saturday, 13 July 2013


(इस पोस्ट में अज्ञेय के छन्द और कविता के परस्पर संबंध के बारे में एक टिप्पणी है। काव्य शास्त्र के कोर्स में आपके लिए यह बहुत उपयोगी रहेगी)

HIN 502  काव्यशास्त्र – सृजन और सौन्दर्य

छन्द : भाषा की ध्वनियों का संगठन या नियमन । छन्द के द्वारा हम साधारण बोल-चाल के गद्य की लय को नियमित करते हैं – यानी स्वर मात्राओं के परस्पर संबंधों को सरलतर बना देते हैं : जो निहित रहता है उसे विहित कर देते है- या कर नहीं देते तो पहचाना जाने लायक कर देते हैं।
       छन्द स्वरों को स्पष्टतर करता है : भाषा की गति को धीमा करता है क्योंकि स्वरों की मात्रा बढ़ाता है : दीर्धतर स्वर अपनी पूरी अनुगूँज के साथ सामने आते हैं। उन की सच्ची रंगत पहचानी जाती है। स्वरों  की रंगत भावना की रंगत है : अतः छन्द के द्वारा स्वर अर्थ की वृद्धि करते है। छन्द मय उक्ति हमें शब्दार्थ भर नहीं देती --------- रंजना - विशिष्ट भावार्थ देती है।
       छन्द शह्दों को मूर्त करता है, मुखर करता है, उनके ध्वन्याकार को आलोकित करता है।
       छन्द- काव्य भाषा की आँख है। भाषा अपने को केवल सुन कर भी काम चलाती रहती है ; काव्य-भाषा अपने को देख भी लेती है।

                                                       ( पृ 37 , भवन्ती, अज्ञेय राजपाल एंड स्स, दिल्ली प्रथम संस्करण , 1972)