जिन खोजा तिन पाइयां

इस ब्लॉग में विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं के उत्तर देने की कोशिश की जाएगी। हिन्दी साहित्य से जुड़े कोर्सेस पर यहाँ टिप्पणियाँ होंगी,चर्चा हो सकेगी।

Thursday, 29 December 2011

HN508शोध-प्रविधि




A-Objectives

1- To teach how to systemize knowledge.

B-Outcome of the Course

1- Develop scientific attitude

UNITS

1) शोध की परिभाषा एवं महत्व

2) शोध के प्रकार

3) शोध के उपकरण

a) पुस्तकालय,  b)अन्तर्जाल

4) शोध-प्रविधि

5) शोध-पत्र लेखन - प्रक्रिया एवं प्रविधि


संदर्भ पुस्तकें

1- नवीन शोध-विज्ञान, डॉ तिलक सिंह, प्रकाशन संस्थान, दिल्ली

2- साहित्यिक अनुसंधान के आयाम, डॉ. रवीन्द्रकुमार जैन, नेश्नल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली

3- शोध स्वरूप एवं मानक व्यावहारिक कार्यविधि, बैजनाथ सिंहल, मैकमिलन कंपनी, दिल्ली

4- अनुसंधान- स्वरूप एवं प्रविधि, डॉ. रामगोपाल शर्मा दिनेश, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर







HN508शोध-प्रविधि




A-Objectives

1- To teach how to systemize knowledge.

B-Outcome of the Course

1- Develop scientific attitude

UNITS

1) शोध की परिभाषा एवं महत्व

2) शोध के प्रकार

3) शोध के उपकरण

a) पुस्तकालय,  b)अन्तर्जाल

4) शोध-प्रविधि

5) शोध-पत्र लेखन - प्रक्रिया एवं प्रविधि


संदर्भ पुस्तकें

1- नवीन शोध-विज्ञान, डॉ तिलक सिंह, प्रकाशन संस्थान, दिल्ली

2- साहित्यिक अनुसंधान के आयाम, डॉ. रवीन्द्रकुमार जैन, नेश्नल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली

3- शोध स्वरूप एवं मानक व्यावहारिक कार्यविधि, बैजनाथ सिंहल, मैकमिलन कंपनी, दिल्ली

4- अनुसंधान- स्वरूप एवं प्रविधि, डॉ. रामगोपाल शर्मा दिनेश, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर







Tuesday, 27 December 2011

HIN510PT

इस नए सत्र के पाठ्यक्रम को अगर आप पढ़ें तो आपकी नज़र सबसे पहले उसके उद्देश्य(Objectives) तथा उसके परिणाम( Outcome of the course) की तरफ़ जाएगी। इसका कोर्स का उद्देश्य है कि विद्यार्थी स्व-अभिव्यक्ति को किस तरह प्रस्तुत करें इसे व्यावहारिक स्तर पर बताया जाए। और इसका उद्देश्य है कि उसकी नौकरी की संभावनाएं खुलें। विभाग उसे किस तरह उसीके पाठ्यक्रम में यह सुविधा देता है। जिस तरह आपने पिछले सेमिस्टर में विज्ञापन बनाना सीखा। हाँ ,पाठ्यक्रम आपको केवल उसकी भूमिका दे सकता है। आपको मेहनत तो स्वयं करनी होगी। यहाँ एक बात आपको बता देना चाहती हूँ कि आज सर्जनात्मकता की सबसे अधिक ज़रूरत है। जो इसमें प्राविणय प्राप्त करते हैं वे ही आज सफल होंगे। आपके पाठ्यक्रम में पढ़ी कहानियाँ इसमें मददरूप होंगी।

अब हम आएं अपने इस पाठ्यक्रम की बात करें। इस बात को मैं पहले के दो पोस्ट में हालांकि लिख चुकी हूँ परन्तु इसका थोड़ा अधिक विस्तार करना मुझे ज़रूरी लग रहा है। इसमें आपके पास तीन विकल्प हैं। पहला शोध-पत्र लेखन, दूसरा रूपांतर तथा तीसरा स्क्रिप्ट लेखन का। इसी सत्र में आप एक कोर्स शोध-प्रविधि का पढेंगे। यह कोर्स आपको इस कार्य की सैद्धांतिक भूमिका प्रदान करेगा। आप ने विभिन्न सेमिनारों में विषय-विशेषज्ञों को प्रपत्र पढ़ते हुए सुना होगा। अब आप अपने निर्देशक की मदद से कोई एक विषय चुनें। मसलन- आप एक विषय चुनें- गोदान का स्त्रीवादी अध्ययन। अब आप याद करें कि पहले सेमिस्टर में आपने काव्य शास्त्र के कोर्स के अन्तर्गत नारीवादी समीक्षा का परिचय पाया है। आपने गोदान उपन्यास भी पढ़ा है। उस दिशा में आप और आगे बढ़े। नारीवादी समीक्षा क्या होती है इतना जान लेने के बाद आप दुबारा नए सिरे से गोदान पढें। फिर गोदान के संदर्भ में आप क्या विशेष जान सकते हैं, किन पुस्तकों के आधार पर, उन्हें किस तरह संदर्भित कर सकते हैं, यह सब आपको लिखना है। आपको शोध प्रबंध नहीं लिखना है। आपको इसमें अध्याय नहीं बनाने हैं। परन्तु एक विस्तृत आलेख लिखना है। शोध-आलेख। आप अभी तक जो कोर्स में पढ़ते आए हैं उन पुस्तकों को भी शोध लेख का आधार बना सकते हैं। मसलन आपने कामायनी पढ़ा है , तो कामायनी के आधार पर एक नए दृष्टिकोण से आप लिख सकते हैं। आपने पिछली पोस्टों में देखा होगा कि हमने कामायनी का विस्थापन तथा नारीवादी दृष्टि से अध्ययन प्रस्तुत किया है। आप इस तरह भी लिख सकते हैं। अथवा अगर आपने कहानियों का विकल्प चुना होगा तो नयी कहानी के परिप्रेक्ष्य में आप किसी एक कहानीकार का मूल्यांकन भी कर सकते हैं। अथवा आपने लंबी कविता का विकल्प चुना हो तो आप किसी एक कविता का या दो कविताओं का अध्ययन कर सकते हैं। अगर आप अधिक कल्पनाशील तथा उद्यमी और उत्साही हैं तो आप एक हिन्दी तथा एक गुजराती की लंबी कविता का अध्ययन कर सकते हैं। अथवा पंत की प्रकृति/अरविंद विचार की कविता का गुजराती की उसी तरह की कविता( गुजराती कवि सुंदरम) को ध्यान में रख कर अध्ययन कर सकते हैं। अथवा इसी तरह कई प्रकार के पेपर लिख सकते हैं। आप चाहें तो हिन्दी की एक वर्तमान साहित्यिक पत्रिका और गुजराती की एक वर्तमान साहित्यिक पत्रिका का भी अध्ययन कर सकते हैं। आप चाहें तो अहमदाबाद से छपते एक हिन्दी अकबार तथा गुजराती अखबार की तुलना कर सकते हैं। आपको किसी मुद्दे पर दोनों अखबारों के दृष्टिकोण का अध्ययन करना होगा। इसके अलावा आप अनुवाद के कोर्स में अनुवाद मूल्यांकन पढ़ेंगे। मूल्यांकन के मापदंडों के आधार पर आप किसी अनूदित कृति का मूल्यांकन भी प्रस्तुत कर सकते हैं। आप देखेंगे कि हमारे पाठ्यक्रम में हर कोर्स , दूसरे कोर्स के साथ जुड़ा है। पूरा पाठ्यक्रम एक यूनिट है। यहाँ परीक्षा की दृष्टि से आप चाहें तो भूल सकते हैं। पर ज्ञान प्राप्ति की दृष्टि से अगर याद रखेंगे तो सब एक दूसरे से संबद्ध पाएंगे। आप अपने अपने अजनबी की अस्तित्ववादी शोध-परक समीक्षा कर सकते हैं। आपने अस्तित्ववाद पर पढ़ा है। आपने नारीवादी तथा दलित कृतियां पढ़ी हैं, इतिहास के कोर्स में उसके बारे में पढ़ा है , दलित सौन्दर्य शास्त्र पढ़ा है अतः इस क्षेत्र में भी आप शोध आलेख लिख सकते हैं।

यह प्रोजेक्ट आपको कंप्यटरीकृत करके देना होगा।

इसी तरह जो अन्य दो विकल्प है। तो आपने प्रयोजनमूलक में इनका सैद्धांतिक पक्ष पढ़ा है। अब आपको इनका प्रायोगिक पक्ष प्रस्तुत करना होगा। इसके भी दो एक उदाहरण आप देख सकते हैं। आपको जो कहानी नाट्यात्मक लगती है उसका आप नाट्य रूपांतरण कीजिए। जैसे ईदगाह कहानी का आप कर सकते हैं। जो छात्र इसका नाट्य रूपांतरण करे उसी का आप दृश्य अथवा श्रव्य माध्यम के लिए स्क्रिप्ट लेखन कर सकते हैं। आगे चल कर आप अथवा आपके बाद आने वाले विद्यार्थी इन रूपांतरणों को मंच पर अपनी कॉलेज के लिए अभिनीत भी कर सकते हैं। अब यो युनिवर्सिटी का रेडियो आ गया है। इनका उसके माध्यम से भी प्रसारण हो सकता है। एक तरह से आपका पोर्ट फोलियो बनना शुरु होगा।

इस पूरी प्रक्रिया से आपको लाभ यह होगा कि एम.ए कर लेने के बाद आप बजार में इन चीज़ों की जो संभावनाएं भरी पड़ी हैं उसमें औरों से बेहतर तरीक़े से स्र्पर्धा में ठहर सकते हैं। पर आपको इसके लिए मेहनत करनी होगी। पाठ्क्रम में तो केवल दिशा निर्देशन है।

लेकिन हम हिन्दी के विद्यार्थियों की सबसे बड़ी तक़लीफ़ यह है कि हम अपने विषय को उतनी गंभीरता से नहीं लेते जितना लेना चाहिए। किसी भी भाषा तथा साहित्य के अध्ययन में कंटेंट और एक्स्प्रेशन- ये दो पहलू होते हैं। आपका कंटेंट कितना भी बेहतर हो परन्तु आप अगर भाषा-अभिव्यक्ति में कुशल नहीं हैं, तो सब बेकार है। अतः आपके पाठ्यक्रम में इसकी भी व्यवस्था की है। इस संदर्भ में आप अगली पोस्ट में पढेंगे। इसका संबंध आपके कोर्स 507 से संबंद्ध है।

हाँ, एक बात और । शोध-पत्र लेखन में संदर्भों का विशेष महत्व है। आप जब उसे कंप्यूटरीकृत करवाएंगे तब अगर आप विंडो7 में काम कर रहे हैं, तो ऊपर रेफेरेंस लिखा होगा। आप अपने टाइपिस्ट से कहेंगे तो वह आपको इसमें मदद कर सकेगा। यूँ तो हमने पिछले सत्र में हिन्दी कंप्यूटिंग में हिन्दी में कैसे टाईप किया जाए इसके लिए भी गुंजाइश रखी थी । अगर आपने उसमें कुछ काम किया हो तो आप अपना शोध पत्र खुद टाईप कर सकते हैं।