जिन खोजा तिन पाइयां

इस ब्लॉग में विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं के उत्तर देने की कोशिश की जाएगी। हिन्दी साहित्य से जुड़े कोर्सेस पर यहाँ टिप्पणियाँ होंगी,चर्चा हो सकेगी।

Thursday, 15 March 2012


HIN 509/Unit-5
(2)


अनुवाद और उत्तर-आधुनिकता के संदर्भ में हमने कल क्लास में कुछ बातें समझीं थी। हमने इस बात को जानने का प्रयत्न किया था कि उत्तर आधुनिता के आने पर एक भाषा में लिखा हुआ पाठ जब दूसरी भाषा में जाता है, तब वह एर स्वतंत्र रचना पाठ हो जाता है। हमने इस बात को भी समझा था कि उत्तर आधुनिकता के आने के बाद अनुवाद को देखने का लोगों का नज़रिया बदला । अब वह रचना के बराबर दर्ज़े का समझा जाने लगा है। अनुवाद करना अब दोयम दर्जे का काम नहीं रहा। इसका करारण यह है कि अनुवाद करते समय हम स्रोत पाठ की व्याकरणिक व्यवस्था ही नहीं अपितु एस.एल( सोर्स टैक्स्ट, स्रोत पाठ) में रही सामाजिकता, सांस्कृतिकता,एवं राजनैतिक पक्ष भी टी.एल( टार्जेट टेक्स्ट- लक्ष्य पाठ) में स्थानातरित करते हैं। हमने इस बात की भी चर्चा की थी कि पहले केवल अनुवाद कार्य होता था फिर जब उसके सैद्धांतिक पक्ष की चर्चा होने लगी – मसलन परिभाषा अनुवाद स्वरूप अनुवाद कला-विज्ञान-कौशल अनुवाद की प्रक्रिया, मूल्यांकन आदि तो एक शब्द आया- Translatology( अनुवाद-विज्ञान)। अर्थात् अनुवाद पहले एक कार्य था फिर जब उसता शास्त्र बनने लगा तो अनुवाद विज्ञान की संकल्पना आई। उत्तर आधुनिकता के आने के बाद ही हम अनुवाद-अध्ययन जैसे शब्द की चर्चा करने लगे। अर्थात् एक वाक्य में इसे कहें तो
अनुवाद का कार्य प्राचीन समय से होता आया है जब उसका शास्त्र निर्मित हुआ तो वह अनुवाद-विज्ञान हुआ और उत्तर आधुनिकता के बाद वह अनुवाद –अद्ययन हुआ। यानी कि पहला सूत्र हमने यह जाना
अनुवाद            अनुवाद-विज्ञान          अनुवाद-अध्ययन
(कार्य              मिद्धांत                विमर्श)
आज हम इसी संदर्भ में एक और बात समझने का प्रयत्न करेंगे।
आज हमारे समझने का सूत्र होगा-
पाठ               अन्तर्पाठ              हायपर पाठ
(text                                                inter-text                            hyper text)
इस सूत्र को समझने के लिए कुछ पीछे चलें। हमने मेमिस्टर-2 में विखंडनवाद पढ़ा था। लगभग सभी ने इस बात को समझ लिया है ( या क्-से-कम लिखा ते था ही) कि विखंडन पाठ की एक शैली है।
सबसे पहले पाठ शब्द की ओर अपना ध्यान दें। अनुवाद विज्ञान में सबसे पहले दो शब्दों से हमारा सामना हुआ- स्रोत पाठ तथा लक्ष्य पाठ। इस पर से हमने यह समझा कि सेरोत भाषा में लिखा हुआ कुछ भी पाठ कहलाता है चाहे वह एक वाक्य हो अथवा महाकाव्य हो। यानी जिसका अनुवाद किया जाता है और जो अनूदित होता है वह सब कुछ पाठ होता है।
अनुवाद अध्ययन में
                  लिखी हुई हर चीज़ पाठ(text) है।
                                             पढ़ने की शैली को पाठ कहते हैं।
हर पाठ में                 अन्तर्पाठीयता होती है।
Ø  अन्त्रपाठीयता का अर्थ है कि हर पाठ आपको किसी अन्य पाठ की ओर ले जाता है।
Ø  जैसे तुलसीदास के रामचरित मानस में वाल्मिकी के रामायण का पाठ छिपा है।
Ø  नदी के द्वीप में मृच्छकटिक तथा बाणभट्ट की आत्मकथा का पाठ छिपा है।
Ø  गोदान में भारतीय सामन्ती व्यवस्था, दलित विमर्श तथा स्त्री विमर्श का पाठ छिपा है।
अर्थात्
           एक कृति को पढ़ते हुए हमें अन्य कृतियों के पाठ का स्रण होता है।
           अथवा
    अन्य सामाजिक तथा सांस्कृतिक पाठ छिपे होते हैं जिनका हमें उस पाठ को पढ़ते संय स्मरण होता है। जैसाकि हमने पिछली क्लास में पढ़ा था कि अनुवाद में हं केवल भाषा की व्याकरणिक व्यवस्था का ही पुनः स्थापन नहीं करते बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पाठ का भी पुनः स्थापन करते हैं।
    अब हम अन्तर्पाठीयता से हायपर टैकेस्ट की ओर आते हैं। आपने ही कल मुझे पिछली क्लास में बताय था कि उत्र आदुनिकता से एक अर्थ यह समझ में आता है कि इसका संबंध सूचना प्रौद्योगिकी से भी जुड़ता है। यानी सूचना प्रौद्योगिकी उत्तर आधुनिकता का एक लक्षण है। तो इसका अर्थ यह लेंगे कि सूचना प्रौद्योगिकी संबंध का इंटरनैट है। हायपर टेक्स्ट का संबंध इसी भाषा प्रौद्योगिकी से है, यानी आपके इंटरनैट से भी है। आप इसे इस तरह समझते हैं।
आपने सेमिस्टर-3 में नेट तथा हिन्दी कंप्यूटिंग पढ़ा था। आपने यूनिकोड़ के अन्त्रगत यह समझा था कि कंप्यूटर की अपनी कोई भाषा नहीं होती। (यानी हिन्दी, गुजराती, अंग्रेज़ी आदि)  आप अपने कंप्यूटर पर कोई अक्षर लिखते हैं- मसलन र या R । कंप्यूटर उसे बाइनरी डिजिट में समझता है। वह आपके लिखे को अपनी भाषा में लिखता है। जैसे नीचे दो चित्र दिए गए हैं। चित्र-1 गूगल के सर्च इंजन का मुख पृ।ठ है। उसे कंप्यूटर ने जिस तरह पढ़ा है उसे चित्र -2 में दिया गया है।( यह असल में बहुत अधिक विस्तृत है।)
(चित्र-1)
India


Google.co.in offered in: Hindi Bengali Telugu Marathi Tamil Gujarati Kannada Malayalam Punjabi
(इसमें गूगल का चित्र प्रतिलिपित नहीं हुआ है।

    ( चित्र-2)
<!doctype html><html itemscope itemtype="http://schema.org/WebPage"><head><meta http-equiv="content-type" content="text/html; charset=UTF-8"><meta itemprop="image" content="/images/google_favicon_128.png"><title>Google</title><script>window.google={kEI:"XFxhT_fbHsP4rQfZ98SCBA",getEI:function(a){var d;while(a&&!(a.getAttribute&&(d=a.getAttribute("eid"))))a=a.parentNode;return d||google.kEI},https:function(){return window.location.protocol=="https:"},kEXPI:"17259,23756,24878,27400,31701,35703,36683,36888,37003,37102,37153,37453,37568",kCSI:{e:"17259,23756,24878,27400,31701,35703,36683,36888,37003,37102,37153,37453,37568",ei:"XFxhT_fbHsP4rQfZ98SCBA"},authuser:0,
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delete k[i];return}e.src=j;g.li=i+1},lc:[],li:0,j:{en:1,l:function(){google.fl=true},e:function(){

(यह बहुत विस्तृत है जिसका एक छोटा-सा अंश यहाँ दिया गया है)
   
अर्थात्
    हम जो लिखते हैं उसे कंप्यूटर अलग ढंग  पढ़ता है। अपने ढंग से लिखता है। उसके पाठ की दृश्यात्मकता तथा हमारे पाठ की दृश्यात्मकता में अंतर है। इसी को मूलतः हापर जैक्स्ट कहते है। मोटे तौर पर कंप्यूटर पर लिखा कुछ भी हायपर टैक्स्ट होता है। इसका मतलब यह हुआ कि कंप्यूटर हमारे पाठ को अपनी अभिव्यक्ति पद्धति (भाषा) में हम तर संप्रेषित करता है। बिना अर्थ को परिवर्तित किए। हमारा पाठ कंप्यूटर अपनी तरह पढ़ता है। हायपर टैक्स्ट की दृश्यात्मकता स्क्रीन पर की दृश्यात्मकता से अलग दिखती है पर है वह वही।
अनुवाद में हम क्या करते हैं ?
बिना अर्थ बदले स्रोत पाठ को अपनी अभिव्यक्ति पद्धति (भाषा) में स्थानातरित करते हैं।
यही अनुवाद की उत्तर आधुनिक तकनीकी समझ है।
लेकिन हमारी बात अबी अधूरी है।शेष अगली पोस्ट में।

HIN509-अनुवाद में उत्तर आधुनिकता
(1)
"अनुवाद में उत्तर-आधुनिकता" हमारे HIN509 कोर्स का पाँचवा यूनिट है। अनुवाद और उत्तर आधुनिकता की चर्चा कोई नई नहीं है। उत्तर आधुनिकता का प्रभाव जिस तरह साहित्य पर पड़ा उसी तरह अनुवाद पर भी पड़ा। इसकी चर्चा करने के पूर्व हम इसकी एक भूमिका समझ लें।
जेम्स होम्स ने 1972 में 'दू नेम एंड नेचर ऑफ ट्रांस्लेशन स्टडीज' में जैसे अनुवाद अध्ययन की शुरुवात का घोषणा-पत्र जारी कर दिया। अगर इस वर्ष को आधार मानें तो यह कहना पडेगा कि कि अभी अनुवाद अध्ययन को पूरे पचास वर्ष भी नहीं हुए हैं। अभी यह विद्या शाखा अपने बचपन या किशोर अवस्था में ही है। परन्तु तेज गति से दौड़ते इस समय को देखते हुए ज्ञान शाखाएं बहुत जल्दी और तेज़ी से बड़ी हो रही हैं अतः हम कह सकते हैं कि इस विद्या शाखा का यह फुल्ल-यौवन काल है।
अनुवाद संबंधी हमारी समझ को हम तीन हिस्सों में बाँट सकते हैं
1-       

अनुवाद कार्य (यह अनुवाद से जुड़ा सबसे प्राचीन स्वरूप है।
2-       अनुवाद सिद्धांत-( Translatology)
3-       अनुवाद अध्ययन-1972 से (Translation Studies)
अनुवाद अध्ययन का संबंध उसके उत्पादन तथा उसके वर्णन से भी संबंद्ध है। एक ऐसे सिद्धांत की खोज जो अनुवाद उत्पादन के लिए भी भी मार्ग दर्शिका रहे। अतः अनुवाद अध्ययन के दो भाग किए जा सकते हैं-
1-      शुद्ध अनुवाद अध्ययन जिसमें सैद्धांतिक तथा वर्णात्मक अनुवाद अध्ययन तथा
2-प्रायोगिक अनुवाद अध्ययन
Ø  शुद्ध अनुवाद अध्ययन के अन्तर्गत सैद्धांतिक में इन बातों को शामिल किया जा सकता है-
1. सामान्य अनुवाद अध्ययन तथा     2. आंशिक अनुवाद अध्ययन
·         आंशिक अनुवाद के अतर्गत निम्नलिखित  मुद्दों का समावेश संभव है-
a) माध्यम द्वारा मर्यादित
b) क्षेत्र द्वारा मर्यादित
c) रैंक द्वारा मर्यादित
d) पाठ द्वारा मर्यादित
e) समय द्वारा मर्यादित
f) समस्या द्वारा मर्यादित

·         (2) शुद्ध अनुवाद अध्ययन के अन्तर्गत वर्णनात्मक अनुवाद अध्ययन में इन बातों का समावेश  संभव है


a)  उत्पाद आधारित-     जिसमें पहले से ही अनूदित प्राप्त अनुवाद की चर्चा हो


b)  प्रक्रिया आधारित-     जिसमें प्रक्रिया दौरान होने वाले मानसिक प्रक्रियाओं की बात हो।


c)  प्रकार्य आधारित- जिसमें इस बात का अध्ययन हो कि लक्ष्य भाषा की संस्कृति में इन अनुवादों का क्या असर पड़ सकता है या अनुवाद की क्या भूमिका हो सकती।


Ø  अनुवाद के प्रायोगिक पक्ष का संबंध अनुवाद प्रशिक्षण, अनुवाद उपकरण तथा अनुवाद समीक्षा से संबंधित है।


आज अनुवाद के उत्तर आधुनिक संदर्भ के साथ-साथ उसके उत्तर-औपनिवेशिक संदर्भ को भी देखा जा रहा है, अतः एक महत्व का प्रश्न यह भी उठता है कि पश्चिमी जगत ने जो अनुवाद की समझ, संकल्पना तथा सिद्धांत दिए हैं, क्या हम अपने अनुवादों के परिप्रेक्ष्य में उन्हे अपने तरीके से नहीं देख सकते।

इस भूमिका के बाद जब हम अनुवाद के उत्तर आधुनिक स्वरूप की बात करते हैं तो भाषा प्रौद्योगिकी , संगणक, बाज़ार, विज्ञापन आदि की बात तो करते ही हैं पर साथ ही परिधि पर स्थित , अलक्षित को लक्षित करने की भी बात है। चाहे 1972 के पहले की बात करें या फिर उसके की बात हो , अनुवाद हमेशा दोयम दर्ज़े पर रहा है। परन्तु वाल्टर बेंजामिन और उनसे भी अधिक जाक देरिदा के बाद अनुवाद को देखने का नज़रिया बदल जाता है। पहले साहित्य केन्द्र में था अनुवाद हाशिए पर  था। वह मूल का पिछलग्गू था। लेकिन उत्तर-आधुनिकता के आने के बाद अनुवाद का स्थान बदल गया।

अनुवाद का मुख्य उद्देश्य संप्रेषण है- भावों, विचारों तथा भाषा सौन्दर्य का संप्रेषण। भाव तथा विचार की अभिव्यक्ति भाषा के माध्यम से होती है। भाषा में शब्द होते हैं और शब्दों के अर्थ होते हैं। उत्तर-आधुनिकता में प्रवेश करने का एक रास्ता यह भी रहा कि शब्द तथा अर्थ के संदर्भ में समझ बदली। अर्थ स्थिर नहीं होते। अर्थ संदर्भ के अनुसार तय होते हैं। वे अनिश्चित होते हैं, अनंत होते हैं। अतः स्रोत पाठ के किसी भी शब्द का कोई एक निश्चित अर्थ होता नहीं हैं। अतः यह तय कर पाना कि कौन-सा अर्थ लिया जाए यह बहुत मुश्किल होता है।
पहले अनुवाद का संबंध भाषा विज्ञान से ही था। व्याकरण से था। उत्तर आधुनिक समय में आ कर अनुवाद का संबंध राजनीति, समाज-शास्त्र, संस्कृति अध्ययन तथा विचारधारा से जुड़ गया।
जब हम कहते हैं हैं कि अनुवाद में एक पाठ दूसरे पाठ में, एक भाषा से दूसरी भाषा में स्थानांतरित होता है तो केवल एक भाषा व्यवस्था को दूसरी भाषा व्यवस्था में ही नहीं ले जाते बल्कि एक समाज को दसरे समाज में, एक संस्कृति को दूसरी संस्कृति को स्थानांतरित करते हैं, रूपांतरित करते हैं।
अनुवाद अध्ययन के संदर्भ में कुल तीन पोस्ट मैं भेजूंगी। इस संदर्भ में आप अफने सवाल भी भेज सकते हैं।