जिन खोजा तिन पाइयां

इस ब्लॉग में विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं के उत्तर देने की कोशिश की जाएगी। हिन्दी साहित्य से जुड़े कोर्सेस पर यहाँ टिप्पणियाँ होंगी,चर्चा हो सकेगी।

Tuesday, 7 February 2012

सुरेखा बहन,
आपने लिखा है कि आप बाह्य छात्रा हैं। आप कुछ पूछना चाहती थीं। मैं जो जानती हूँ, आपको अवश्य बताऊंगी, अगर वह मेरे लिए संभव हो तो। आपको इस ब्लॉग से नई दिशा मिली, यह अच्छी बात है। आप हिन्दी कंप्यूटिंग की दिशा में आगे बढ़ रही हैं, यह उत्साहवर्द्धक  बात है। पर आपका काम केवल ब्लॉग से नहीं होगा। आपको पढ़ना भी पड़ेगा। यह आपसे मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि आप ही की तरह और विद्यार्थी भी होंगे। यह उनके लिए भी है। 
लगता है आपका प्रश्न अधूरा है अभी। आपने कौन-सी पोस्ट पढ़ी है। 
रंजना अरगडे

पिछली पोस्ट से जारी ( HIN507 )
आपने पिछली पोस्ट पढ़ी होगी और आपको यह बात समझ में आ गयी  होगी कि इस प्रकार के सर्जनात्मक लेखन में टार्गेट ऑडियन्स का कितना महत्व है। अब एक काम आप कर सकते हैं। किसी भी परिचित कृति को आधार बना कर निबंधात्मक विवरण लिखने का प्रयत्न करें। सबसे अधिक सरल और परिचित कृति हमारे लिए रामचरितमानस हो सकती है। आप चाहें तो कामायनी, गोदान जैसी आधुनिक कृतियां भी ले सकते हैं। परन्तु आधुनिक कृतियाँ, तुलना में अधिक चुनौति भरी होती हैं।
आप किसी एक कृति को आधार बना कर दो निबंधात्मक विवरण लिख कर देखें। इसके शब्दों की अधिकतम सीमा 200 शब्दों की हो। अगर 200 शब्दों में संभव नहीं है तो आरंभ में 500 शब्द लिखें और बाद में उसे 200 शब्दों में संपादित करें। 200 शब्दों का आग्रह इसलिए कि हमारी परीक्षा में सबसे बड़ा प्रश्न 200 शब्दों का ही होता है। दूसरे, यह कार्य व्यावसायिक क्षेत्र के लिए आप करेंगे। वहाँ किसी के पास विस्तृत लेख पढ़ने का समय नहीं होता। तीन सेमिस्टर में अध्ययन करने के बाद आप अब तक तो 200 शब्द-लेखन कौशल में माहिर हो ही चुके होंगे ! आपका पहला टार्गेट ऑडियन्स है, स्कूल के छात्र ( यानी 7/8-13 वर्ष की आयु के बच्चे) और दूसरा टार्गेट ऑडियन्स है, 25 वर्ष की आयु से अधिक के लोग। आप इसे लिखते समय सबसे पहले भाषा का ध्यान रखेंगे और उसके बाद उसमें प्रकट होते अथवा किए जाने वाले मूल्यों की ओर आपका ध्यान होना चाहिए।
इस दो प्रकार के लेखन को करते समय आप अपनी लेखन प्रक्रिया का भी निरीक्षण अवश्य करें तथा बाद में उसका विश्लेषण करें। पर मन-ही-मन। इस प्रक्रिया-विश्लेषण-निरीक्षण के फलस्वरूप आपका अगला लेखन अधिक सरल एवं बेहतर होगा।
      अब हम यूनिट -4 की बात करेंगेजिस तरह यूनिट 3 में निबंधात्मक लेखन के विषय में हमने जानकारी ली, उसी तरह यूनिट-4 में कथात्मक लेखन की हमें जानकारी होनी चाहिए। इस यूनिट में आपको चार मुद्दे पढ़ने हैं और कहानी भी लिखनी है। कहानी की भाषा, भाषा की सर्जनात्मकता, विभिन्न प्रकार की कहानियों में प्रयुक्त भाषा पाठ, कहानी लेखन । यहाँ आप देख सकते हैं कि ज़ोर फिर एक बार भाषा पर है। आपके मन में यह सवाल उठ सकता है कि जहाँ तक निबंध का प्रश्न है यह तो समझ में आ गया कि कथा होती नहीं है, अतः भाषा और विचारों पर अधिक बल दिया जाता है। पर कहानी में तो कथा तत्व, पात्र, देशकाल, वातावरण सभी कुछ होता है। फिर इन तत्वों को छोड़ कर हम केवल भाषा पर ही क्यों केन्द्रित हैं ? आपने यह भी देखा होगा कि इसमें भाषा पर दो यूनिट हैं। एक केवल भाषा और एक भाषा की सर्जनात्मकता। भाषा की सर्जनात्मकता, कहानी में उसके वर्णन, पात्र तथा कथा-विकास, मनोमंथन देशकाल आदि से संबंद्ध होती है। जैसे आपने प्रसाद की कहानियाँ पढ़ी होंगी। उन कहानियों में देश काल के वर्णन में ही, प्रकृति के वर्णन में ही पात्र की मानसिकता और कहानी का विकास दिखाई पड़ता है। इकाई एक में कहानी की भाषा पर आपको सोचना है। अब कहानी की भाषा निबंध की भाषा की तरह तो नहीं होगी। उसमें न व्याकरण की व्यवस्था की बाध्यता है न ही मानक भाषा के प्रयोग का आग्रह। आप की कहानी का जो परिवेश होगा वैसी ही भाषा होगी। प्रसाद की कहानियों के साथ-साथ आपने प्रेमचंद की कहानियाँ पढ़ीं हैं और निर्मल वर्मा की भी पढ़ी हैं। तीनों की एक-एक कहानी लें और देखें की भाषा का पोत क्या है। पोत शब्द का अर्थ है वस्त्र जिस तरह स्पर्श के बाद हाथ को महसूस होता है। तो भाषा का पोत यानी कहानी पढ़ते हुए उसकी भाषा का कैसा असर आपके मन पर पड़ता है। अगर कोई पाठ कर रहा है तो मन के साथ-साथ कानों पर किस तरह का असर पड़ रहा है। जैसे ही भाषा का यह स्वरूप और भाषा की बारीकियों का आपको अंदाज़ा होता जाएगा आपकी समझ में यह आ जाएगा कि कहानी में किस तरह की भाषा होती है। इसमें भी आप निबंध से उसकी भिन्नता को पहचानें, कविता-(लंबी, कथात्मक कविता से उसकी भिन्नता को जानें और कहानी की भाषा की विशेषताएं जाने। असाध्य वीणा अज्ञेय की लंबी कविता है जिसमें कथात्मकता का अंश है। आप को अगर इसे कहानी में लिखना होगी तो तुरंत आपकी भाषा बदल जाएगी। उसमें केशकंबली का, राजा का प्रजा का चरित्र आएगा। आरंभिक वर्णन देशकाल में चला जाएगा। वहाँ भाषा का अलग स्वरूप होगा। दूर क्यों जाते हो... आपने सेमिस्टर-1 में रवीन्द्रनाथ की कई कथात्मक कविताएं पढ़ी हैं। आपको अगर इन कथात्मक कविताओं की कहानियाँ लिखनी हैं तो ...... कर के देखिए।
      इसमें एक और बात जोड़िए। इन कविताओं के निबंधात्मक विवरण लिखें। यानी कविता की कहानी बनाएं और कविता का निबंधात्मक विवरण। भाषा के स्वरूप की भिन्नता का आपको पता चल जाएगा। आज के लिए इतना ही। बाक़ी चर्चा अगली पोस्ट में। 
  

Monday, 6 February 2012

समस्या और निराकरण (HIN507)



आपके मन में इस बीच अपने कोर्सेस पढ़ते हुए कई तरह के प्रश्न उठे होंगे। आपने इस संदर्भ में मुझसे चर्चा भी की है। सबसे पहले तो आप अब यह सोच रहे होंगे कि इन नए प्रकार के कोर्सेस पढ़ तो रहे हैं, पर अब परीक्षा में प्रश्न किस तरह के आएंगे ? प्रश्न किस तरह के आ सकते हैं, यह सोचने की अपेक्षा आप इस बात को यों समझिए कि इन सर्जनात्मक कोर्सेस में प्रश्न किस तरह के बन सकते हैं। मुझे मालूम है कि इस के बाद आपका प्रश्न होगा कि इसमें जो सामग्री हमें मिली है, वह क्या काफ़ी है ?
अब इन दोनों प्रश्नों पर हम क्रमशः विचार  करेंगे।
आज हम बात कोर्स  507 HIN से आरंभ करेंगे।
इस कोर्स में हम जो यूनिट्स पढ़ रहे हैं, उन्हें हम तीन हिस्सों में बाँट सकते हैं। प्रायोगिक भाषा विज्ञान, सर्जनात्मक लेखन एवं सर्जनात्मक लेखन के आधार उपकरण। सबसे पहले आप यूनिट 3 एवं 4 को ही लें। ये यूनिट निबंध लेखन एवं कहानी लेखन से संबंधित हैं। आप यह भी याद रखें कि इस कोर्स के माध्यम से किसी को भी साहित्यकार बनाया नहीं जा सकता। लेकिन लेखन का कौशल सिखाया जा सकता है। यह लेखन- कौशल आपको आगे चल कर स्क्रिप्ट लेखन एवं अख़बारी लेखन करने में उपयोगी हो सकता है। आपने पहले सेमिस्टर में कोर्स 406 में निबंध पढ़े हैं। इसके अलावा आपने बी.ए में भी निबंध पढ़े होंगे। अब अगर आप ध्यान से देखेंगे तो यूनिट 3 में चार मुद्दे हैं निबंध की भाषा, निबंध की शैली, विभिन्न प्रकार के निबंधों में प्रयुक्त भाषा का पाठ तथा निबंध लेखन।
अब आपको अपने व्यावसायिक काम के लिए निबंध लिखना है। या निबंधात्मक लेखन करना है। निबंधात्मक लेखन से हमारा क्या मतलब है ? तो जब तक आप इसके तत्वों को लेखन के स्तर पर नहीं जानेंगे, तब तक आप इसे(निबंध को) लिख नहीं सकेंगे। इसका मतलब यह है कि इस कोर्स में आपको ये तत्व वास्तविक लेखन के स्तर पर समझने हैं। तो निबंध की भाषा कैसी होनी चाहिए इसकी आपको जानकारी होनी चाहिए। निबंध की भाषा का चुनाव आप अपने विषय के अनुरूप ही करेंगे। उसी के अनुरूप आपकी शैली भी होगी, अतः आप वैसी ही शैली चुनेंगे। आपने जो भी निबंध पढ़े हैं, फिर सेमिस्टर एक में आठ निबंध तो आप पढ़ चुके हैं, उन्हीं को ध्यान में रखते हुए इस बात को आप समझ सकते हैं। किस तरह काका कालेलकर की भाषा गुणाकर मुळे की भाषा से अलग है, उसके क्या  कारण हैं, इस बात को आप समझ ही सकते हैं- विषय भी भिन्न है और लेखक का व्यक्तित्व भी अलग है आदि। या फिर व्यंग्य-शैली होते हुए भी किस तरह प्रतापनारायण मिश्र की शैली और बालकृष्ण भट्ट की शैली अलग है। अथवा तो नारी और स्त्री नामक निबंध लिखने वाले एक ही रचनाकार होने के बावजूद शैली तथा भाषा में क्या अंतर है। आप इन मुद्दों पर सोचेंगे तो अपने आप आपको अपने प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे। कौन से प्रश्न ? किस तरह के प्रश्न पूछे जाएंगे इत्यादि। सेमिस्टर एक में पढ़े सभी निबंधों में भाषा के अलग-अलग पाठ आपको दिखाई देंगे। अंत में आपको स्वयं निबंध लिखना है।
तो पाँचवां यूनिट तो आपके सुनियोजित रचनाकर्म से संबंधित है। लेकिन इस यूनिट के करने के लिए पहले चार यूनिट आपको आने होंगे। निबंध की भाषा नामक पहले यूनिट में आपको इन बातों को ध्यान में रखना है। इसमें आप निबंध की भाषा किस तरह कथात्मक गद्य साहित्य (कहानी, उपन्यास) से अलग है, निबंध में, भाषा का क्या स्थान होता है। निबंध लेखक को भाषा पर अधिकार क्यों होना चाहिए, अगर गद्य कवियों की कसोटी है तो निबंध क्यों गद्यकारों की कसौटी है- इस प्रश्न पर आपको सोचना होगा। तत्सम प्रधान भाषा कैसी होती है, बोलचाल की भाषा क्या निबंध में होती है ? निबंध अगर मुख्यतः विचारों को वहन करता है तो क्या बोलचाल की भाषा का उसमें प्रयोग हो सकता है ? तो किस तरह के शब्दों का उसमें अधिक प्रयोग होगा। तत्सम, तद्भव या फिर देशज? आप निबंधों को पढ़िए और देखिए। किस तरह की शैली को साथ किस तरह के शब्दों का प्रयोग होगा। अगर आपकी शैली सामासिक होती तो शब्द किस प्रकार के होंगे? क्या आप तब तद्भव शब्दों का प्रयोग कर सकेंगे? निश्चित रूप से नहीं। आप द्विवेदीजी (हजारीप्रसाद) के निबंध पढ़िए, आपकी समझ में आ जाएगा। तो यही सारे प्रश्न हैं..... समझ गए आप।
उसी तरह निबंध में वर्णनात्मक, विवरणात्मक, सामासिक, व्यास आदि शैलियों का प्रयोग किया जाता है। अब आपको एक निबंध लिखना है, यात्रा के विषय में, तो ज़ाहिर है आप वर्णनात्मक शैली का ही प्रयोग करेंगे। पर आपको एक घटना के विषय में लिखना है तो आप विवरणात्मक शैली का ही प्रयोग करेंगे। लेकिन इसमें भी कई पेंच हैं। आपका स्वभाव, आपका विषय आपकी भाषा और शैली को तय करेंगे। लेकिन अगर कोई विषय दे दिया गया हो तो क्या करेंगे आप ? अगर आप व्यावसायिक कामों के लिए लिख रहे हैं तो आपका टार्गेट ऑडियंस, यानी कि आप किसके लिए लिख रहे हैं, यह भी तय करेगा कि आपकी भाषा कैसी हो। यही हमें सीखना भी है। जैसे अगर आपको  कंब रामायण का परिचय देता हुआ एक निबंधात्मक विवरण देना चाहते हों, तो आपका टार्गेट ऑडियंस जो होगा उसके अनुसार आपको अपनी भाषा को स्वरूप देना होगा। अगर आपका टार्गेट ऑडियंस रिसर्च स्कॉलर अथवा स्नातकोत्तर विद्यार्थी है तो आपकी भाषा और शैली अलग होगी और अगर वह स्कूल का छात्र हो अथवा आम जनता हो तो आपकी भाषा शैली अलग हो जाएगी।
इस कोर्स में हमें असल में इन्हीं मुद्दों को ध्यान में रखते हुए अध्ययन करना है। अतः इसमें जिन प्रश्नों के उत्तर आपको देने होंगे उसमें विषय को लेकर आपकी समझ ज़्यादा काम करेगी।
आपको इस बात को समझ लेना होगा कि इस स्पर्द्धा के युग में अब कहने भर को डिग्रीधारी बनने से काम नहीं चलेगा, उसमें भी हिन्दी के छात्रों को। इस बात की गांठ  बांध लीजिए कि अगर हम साहित्य के विद्यार्थी सही भाषा में अपने विचारों को व्यक्त नहीं कर सकेंगे तो हमें कोई काम नहीं मिलेगा। इन कार्सेस से हम इसी बात को समझ रहे हैं और अपने को तैयार कर रहे हैं। हमें केवल अन्य भाषा तथा साहित्य के विद्यार्थियों से ही स्पर्द्धा नहीं करनी अपितु अन्य विषयों के विद्यार्थियों के बीच अपनी साख़ बनानी है। हिन्दी भाषा और साहित्य पढ़ने वाला विद्यार्थी किसी भी अन्य विषय पढ़ने वाले विद्यार्थी से कमतर नहीं है- यह तभी आप साबित कर सकेंगे जब आप अपने ढंग से सोच सकेंगे और सोचे हुए को अभिव्यक्त कर सकेंगे। हमारा यह नया पाठ्यक्रम इसी के प्रति आपको अभिमुख करने के लिए और तैयार होने के उपकरण आपको दे रहा है।
यूनिट चार के बारे में कल बात करेंगे। आज के यूनिट के  संदर्भ में आपको कुछ पूछना है तो आपके प्रश्नों का स्वागत है।