आपके मन में इस बीच अपने
कोर्सेस पढ़ते हुए कई तरह के प्रश्न उठे होंगे। आपने इस संदर्भ में मुझसे चर्चा भी
की है। सबसे पहले तो आप अब यह सोच रहे होंगे कि इन नए प्रकार के कोर्सेस पढ़ तो
रहे हैं, पर अब परीक्षा में प्रश्न किस तरह के आएंगे ? प्रश्न किस तरह
के आ सकते हैं, यह सोचने की अपेक्षा आप इस बात को यों समझिए कि इन सर्जनात्मक
कोर्सेस में प्रश्न किस तरह के बन सकते हैं। मुझे मालूम है कि इस के बाद आपका
प्रश्न होगा कि इसमें जो सामग्री हमें मिली है, वह क्या काफ़ी है ?
अब इन दोनों प्रश्नों पर
हम क्रमशः विचार करेंगे।
आज हम बात कोर्स 507 HIN से आरंभ करेंगे।
इस कोर्स में हम जो
यूनिट्स पढ़ रहे हैं, उन्हें हम तीन हिस्सों में बाँट सकते हैं। प्रायोगिक भाषा
विज्ञान, सर्जनात्मक लेखन एवं सर्जनात्मक लेखन के आधार उपकरण। सबसे पहले आप
यूनिट 3 एवं 4 को ही लें। ये यूनिट निबंध लेखन एवं कहानी लेखन से संबंधित हैं। आप
यह भी याद रखें कि इस कोर्स के माध्यम से किसी को भी साहित्यकार बनाया नहीं जा
सकता। लेकिन लेखन का कौशल सिखाया जा सकता है। यह लेखन- कौशल आपको आगे चल कर
स्क्रिप्ट लेखन एवं अख़बारी लेखन करने में उपयोगी हो सकता है। आपने पहले सेमिस्टर
में कोर्स 406 में निबंध पढ़े हैं। इसके अलावा आपने बी.ए में भी निबंध पढ़े होंगे।
अब अगर आप ध्यान से देखेंगे तो यूनिट 3 में चार मुद्दे हैं निबंध की भाषा, निबंध की शैली, विभिन्न प्रकार के निबंधों में प्रयुक्त भाषा का पाठ तथा निबंध लेखन।
अब आपको अपने व्यावसायिक काम के
लिए निबंध लिखना है। या निबंधात्मक लेखन करना है। निबंधात्मक लेखन से हमारा क्या
मतलब है ? तो जब तक आप इसके तत्वों को लेखन के स्तर पर नहीं जानेंगे,
तब तक आप इसे(निबंध को) लिख नहीं सकेंगे। इसका मतलब यह है कि इस कोर्स में आपको ये
तत्व वास्तविक लेखन के स्तर पर समझने हैं। तो निबंध की भाषा कैसी होनी चाहिए इसकी
आपको जानकारी होनी चाहिए। निबंध की भाषा का चुनाव आप अपने विषय के अनुरूप ही
करेंगे। उसी के अनुरूप आपकी शैली भी होगी, अतः आप वैसी ही शैली चुनेंगे। आपने जो
भी निबंध पढ़े हैं, फिर सेमिस्टर एक में आठ निबंध तो आप पढ़ चुके हैं, उन्हीं को
ध्यान में रखते हुए इस बात को आप समझ सकते हैं। किस तरह काका कालेलकर की भाषा
गुणाकर मुळे की भाषा से अलग है, उसके क्या
कारण हैं, इस बात को आप समझ ही सकते हैं- विषय भी भिन्न है और लेखक का
व्यक्तित्व भी अलग है आदि। या फिर व्यंग्य-शैली होते हुए भी किस तरह प्रतापनारायण
मिश्र की शैली और बालकृष्ण भट्ट की शैली अलग है। अथवा तो नारी और स्त्री
नामक निबंध लिखने वाले एक ही रचनाकार होने के बावजूद शैली तथा भाषा में क्या अंतर
है। आप इन मुद्दों पर सोचेंगे तो अपने आप आपको अपने प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे।
कौन से प्रश्न ? किस तरह के प्रश्न पूछे जाएंगे इत्यादि। सेमिस्टर एक
में पढ़े सभी निबंधों में भाषा के अलग-अलग पाठ आपको दिखाई देंगे। अंत में आपको
स्वयं निबंध लिखना है।
तो पाँचवां यूनिट तो आपके
सुनियोजित रचनाकर्म से संबंधित है। लेकिन इस यूनिट के करने के लिए पहले चार यूनिट
आपको आने होंगे। निबंध की भाषा नामक
पहले यूनिट में आपको इन बातों को ध्यान में रखना है। इसमें आप निबंध की भाषा किस
तरह कथात्मक गद्य साहित्य (कहानी, उपन्यास) से अलग है, निबंध में, भाषा का क्या स्थान
होता है। निबंध लेखक को भाषा पर अधिकार क्यों होना चाहिए, अगर गद्य
कवियों की कसोटी है तो निबंध क्यों गद्यकारों की कसौटी है- इस प्रश्न
पर आपको सोचना होगा। तत्सम प्रधान भाषा कैसी होती है, बोलचाल की भाषा क्या निबंध
में होती है ? निबंध अगर मुख्यतः विचारों को वहन करता है तो क्या बोलचाल
की भाषा का उसमें प्रयोग हो सकता है ? तो किस तरह के शब्दों का उसमें अधिक प्रयोग होगा।
तत्सम, तद्भव या फिर देशज? आप निबंधों को पढ़िए और देखिए। किस तरह की शैली को
साथ किस तरह के शब्दों का प्रयोग होगा। अगर आपकी शैली सामासिक होती तो शब्द किस
प्रकार के होंगे? क्या आप तब तद्भव शब्दों का प्रयोग कर सकेंगे? निश्चित रूप से नहीं। आप द्विवेदीजी (हजारीप्रसाद) के
निबंध पढ़िए, आपकी समझ में आ जाएगा। तो यही सारे प्रश्न हैं..... समझ गए आप।
उसी तरह निबंध में वर्णनात्मक,
विवरणात्मक, सामासिक, व्यास आदि शैलियों का प्रयोग किया जाता है। अब आपको एक निबंध
लिखना है, यात्रा के विषय में, तो ज़ाहिर है आप वर्णनात्मक शैली का ही प्रयोग
करेंगे। पर आपको एक घटना के विषय में लिखना है तो आप विवरणात्मक शैली का ही प्रयोग
करेंगे। लेकिन इसमें भी कई पेंच हैं। आपका स्वभाव, आपका विषय आपकी भाषा और शैली को
तय करेंगे। लेकिन अगर कोई विषय दे दिया गया हो तो क्या करेंगे आप ? अगर आप व्यावसायिक कामों के लिए लिख रहे हैं तो आपका
टार्गेट ऑडियंस, यानी कि आप किसके लिए लिख रहे हैं, यह भी तय करेगा कि आपकी भाषा
कैसी हो। यही हमें सीखना भी है। जैसे अगर आपको कंब रामायण का परिचय देता हुआ एक निबंधात्मक
विवरण देना चाहते हों, तो आपका टार्गेट ऑडियंस जो होगा उसके अनुसार आपको अपनी भाषा
को स्वरूप देना होगा। अगर आपका टार्गेट ऑडियंस रिसर्च स्कॉलर अथवा स्नातकोत्तर
विद्यार्थी है तो आपकी भाषा और शैली अलग होगी और अगर वह स्कूल का छात्र हो अथवा आम
जनता हो तो आपकी भाषा शैली अलग हो जाएगी।
इस कोर्स में हमें असल में इन्हीं
मुद्दों को ध्यान में रखते हुए अध्ययन करना है। अतः इसमें जिन प्रश्नों के उत्तर
आपको देने होंगे उसमें विषय को लेकर आपकी समझ ज़्यादा काम करेगी।
आपको इस बात को समझ लेना होगा कि
इस स्पर्द्धा के युग में अब कहने भर को डिग्रीधारी बनने से काम नहीं चलेगा, उसमें
भी हिन्दी के छात्रों को। इस बात की गांठ बांध लीजिए कि अगर हम साहित्य के विद्यार्थी
सही भाषा में अपने विचारों को व्यक्त नहीं कर सकेंगे तो हमें कोई काम नहीं मिलेगा।
इन कार्सेस से हम इसी बात को समझ रहे हैं और अपने को तैयार कर रहे हैं। हमें केवल
अन्य भाषा तथा साहित्य के विद्यार्थियों से ही स्पर्द्धा नहीं करनी अपितु अन्य
विषयों के विद्यार्थियों के बीच अपनी साख़ बनानी है। हिन्दी भाषा और साहित्य पढ़ने
वाला विद्यार्थी किसी भी अन्य विषय पढ़ने वाले विद्यार्थी से कमतर नहीं है- यह तभी
आप साबित कर सकेंगे जब आप अपने ढंग से सोच सकेंगे और सोचे हुए को अभिव्यक्त कर
सकेंगे। हमारा यह नया पाठ्यक्रम इसी के प्रति आपको अभिमुख करने के लिए और तैयार
होने के उपकरण आपको दे रहा है।
यूनिट चार के बारे में कल बात
करेंगे। आज के यूनिट के संदर्भ में आपको
कुछ पूछना है तो आपके प्रश्नों का स्वागत है।
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