(इस पोस्ट में अज्ञेय के छन्द और कविता के परस्पर संबंध के बारे में एक टिप्पणी है। काव्य शास्त्र के कोर्स में आपके लिए यह बहुत उपयोगी रहेगी)
HIN 502 काव्यशास्त्र – सृजन और
सौन्दर्य
छन्द : भाषा की ध्वनियों का संगठन या नियमन । छन्द के द्वारा हम
साधारण बोल-चाल के गद्य की लय को नियमित करते हैं – यानी स्वर मात्राओं के परस्पर
संबंधों को सरलतर बना देते हैं : जो निहित रहता है उसे
विहित कर देते है- या कर नहीं देते तो पहचाना जाने लायक कर देते हैं।
छन्द स्वरों को स्पष्टतर करता है : भाषा की गति को धीमा करता है क्योंकि स्वरों की मात्रा
बढ़ाता है : दीर्धतर स्वर अपनी पूरी अनुगूँज के साथ सामने आते हैं। उन
की सच्ची रंगत पहचानी जाती है। स्वरों की
रंगत भावना की रंगत है : अतः छन्द के द्वारा
स्वर अर्थ की वृद्धि करते है। छन्द मय उक्ति हमें शब्दार्थ भर नहीं देती ---------
रंजना - विशिष्ट भावार्थ देती है।
छन्द शह्दों को मूर्त करता है, मुखर करता
है, उनके ध्वन्याकार को आलोकित करता है।
छन्द- काव्य भाषा की आँख है। भाषा अपने को
केवल सुन कर भी काम चलाती रहती है ; काव्य-भाषा अपने को देख भी लेती है।
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