हिन्दी विभाग, गुजरात युनिवर्सिटी, अहमदाबाद एवं विदेश
अध्ययन कार्यक्रम (STUDY ABROAD PROGRAMME) गुजरात
युनिवर्सिटी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित
एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
3 फरवरी 2014
संस्कृति की साहित्य में विभिन्न अभिव्यक्तियाँ : भारतीय एवं विदेशी भाषाओं के विशेष
संदर्भ में
संगोष्ठी की संकल्पना
संसार भर की
भाषाओं में लिखा साहित्य आखिरकार किस लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं? आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के शब्दों में कहें तो-
मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य है । तो पिर दूसरा प्रश्न उठता है - किस तरह का
मनुष्य साहित्य का लक्ष्य हो सकता है? वह जो संघर्ष
करता है जैसे प्रेमचंद की धनिया; वह जो क्रांति और बदलाव की प्रेरणा देता है जैसे
गोर्की की माँ; वह जो तंत्र के भीतर रह कर अगर कुछ भी न कर सके तो कम-से-कम दम्भ तो
नहीं करता और त्यागपत्र दे देता है जैसे जैनेन्द्र के त्यागपत्र का प्रमोद; या
प्राईड एंड प्रेज्युडाईस की नायिका एलिज़ाबेथ बैनेट जो एक स्वतंत्र-मिजाज़ की
ईमानदार और साहसी स्त्री है, जो भूलें करती है और उन्हें स्वीकार करती है और अपनी
भूलों से सीखती भी है; यह सूची लंबी हो सकती है, जिस पर हम काम कर सकते हैं।
ये सारे
'मनुष्य' साहित्य का लक्ष्य हैं और इनकी चर्चा करना भाषा-साहित्य के अध्यापकों एवं
विद्यार्थियों के लिए एक अनिवार्य प्रीतिकर काम है, होना चाहिए, क्योंकि अपने
लक्ष्य में व्यक्ति तभी सफल हो सकता है जब वह बार-बार अपने उद्देश्य का स्मरण करे
और उसे कार्यान्वित करे। एक अच्छे मनुष्य का निर्माण ही एक अच्छे और बेहतर समाज की
संभावना खड़ी करता है।
संस्कृति और
साहित्य अपने में मौखिक तथा लिखित विभिन्न परंपराओं को समेटे हुए है। पृथ्वी के
विशाल पट पर (जो अब पर्यावरणीय संकट में बद्ध है) खड़े मित्र-सम पेड़, नदियाँ और
अन्न उगाने वाली मिट्टी भी संस्कृति के ही प्रतिनिधि हैं, उस शिल्प, संगीत, चित्र
और स्थापत्य के साथ जिन्हें मनुष्य ने निर्मित किया है और बड़े एहतियात के साथ
उनकी महिमा को अपने ग्रंथों में सुरक्षित किया है।
संसार की
विभिन्न भाषाओं में ये अभिव्यक्तियां विभिन्न स्वरूपों में देखी जा सकती हैं
जिन्हें बार-बार स्मरण करना इस तेज़ दौड़ती दुनिया में इसलिए ज़रूरी है क्योंकि
गति जहाँ आगे ले जाती है वहीं कई चीज़ों का
विस्मरण भी कराती है। जितना हम याद रखेंगे उतना ही हम परस्पर संबंध जोड़
सकेंगे। वे संबंध जो हमारी इन भाषाओं की ध्वनियों, स्वरों व्यंजनों, भावों और सोच
में भी है ; समानता और विभिन्नता के बीच अपने संबंधों को पुनः एक बार परखना इस संगोष्ठी का प्रधान हेतु है।
संगोष्ठी के उपविषय-
भारतीय भाषाओं /
विदेशी भाषाओं के साहित्य में प्रकृति के सांस्कृतिक संदर्भ (इसमें हजारीप्रसाद
द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय के निबंधों के संदर्भ में बात हो सकती
है।)
·
मानवीयता की गरिमा की रक्षा करते हुए पात्रों की चर्चा।
·
विदेशी भाषा की कृतियों के अनुवादों का मूल्यांकन भारतीय
सांस्कृतिक संदर्भों में करना । इसमें दोनों भाषाओं में समानता का बिन्दु
महत्वपूर्ण है।
·
मूल्य किस प्रकार सांस्कृतिक धरोहर हैं और विभिन्न भारतीय
एवं विदेशी भाषाओं के साहित्य में वे किस तरह प्रकट हुए हैं।
·
साहित्यिक स्वरूप का तत्-देशीय सांस्कृतिक संबंध एवं
संदर्भ- यथा नाटक, उपन्यास ,हाइकू अथवा भक्ति-काव्यों की संरचना पर बात हो सकती
है।
·
साहित्य के विभिन्न स्वरूपों के कथानकों में किस तरह संस्कृति का दर्शन होता
है।
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