जिन खोजा तिन पाइयां

इस ब्लॉग में विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं के उत्तर देने की कोशिश की जाएगी। हिन्दी साहित्य से जुड़े कोर्सेस पर यहाँ टिप्पणियाँ होंगी,चर्चा हो सकेगी।

Monday, 9 August 2010

रवीन्द्रनाथ की कविताएँ

भारतीय साहित्य ( रवीन्द्रनाथ की कविताएं)इस वर्ष पूरी दुनिया कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर की 150 वीं जयंति मना रही है और हिन्दी जगत अपने चार महत्वपूर्ण कवियों – अज्ञेय, शमशेर, नागार्जुन एवं केदारनाथ अग्रवाल- की जन्मशती वर्ष मना रहा है। इसे हमें अपना सौभाग्य मानना चाहिये कि कविवर टैगोर की कविताएं हमें अपने पाठ्यक्रम में पढ़ने का सौभाग्य मिल रहा है। यह हमारी पीढ़ी की कविवर को स्मरणांजलि भी है और कविवर का हमें दिया हुआ आशिर्वाद भी है। कविवर के शब्दों, भावों और उनकी सौन्दर्य चेतना का हमें जो साक्षात्कार होगा इससे हम बेहतर मनुष्य बनने की दिशा में आगे कदम भी बढ़ाएंगे।
हमारा सबसे पहला प्रश्न यह होना चाहिए कि आखिर रवीन्द्रनाथ में ऐसा क्या है कि इतने बरसों बाद भी हम उन्हें पढ़े? क्या केवल इसलिए कि वह हमारे एकमात्र नोबेल पारितोषिक पाने वाले कवि हैं? या इसलिए कि रवीन्द्रनाथ विश्व के फलक पर भारतीय साहित्य की एक गहरी पहचान हैं? या फिर इसलिए कि मानवीय गरिमा और विश्व-मानव की बात करते हुए रवीन्द्रनाथ ने राष्ट्रीय अस्मिता के अर्थ को व्यापकता दी ? या फिर इसलिए कि हम यह भी जानना चाहते हैं कि सौन्दर्य क्या है! फिर हमारा एक प्रश्न यह भी होना चाहिए कि रवीन्द्रनाथ को किस तरह पढ़ा और समझा जाए? इन बातों की चर्चा हम उनकी कविताओं के माध्यम से करेंगे।
यह बारिश के दिन हैं। रवीन्द्रनाथ ने अपनी कविताओं के माध्यम से प्रकृति के असीम सौन्दर्य तथा रहस्य को हमारे सामने खोल कर रख दिया है। आप से मैंने इस बात की चर्चा की है कि गीतांजलि के गीतों में रवीन्द्रनाथ ने प्रकृति में ही ईश्वर की उपस्थिति को देखा, महसूस किया और अभिव्यक्त किया है। हवा की हल्की-सी लहर हो या तेज़ चलती हवाएं हों, वर्षा की फुहारें हों, या मूसलाधार, वसंत की बयार या फिर पतझड़ ही क्यों न हो, पेड़, पौधे, नदी, झरने ....कुछ भी की उपस्थिति में वह उस रहस्यमय को अनुभव करते हैं- बल्कि स्वयं प्रकृति ही वह रहस्यमय का रूप है- कुछ इस तरह का बोध हमें गीतांजलि को पढ़ कर होता है।
हम रवीन्द्रनाथ की कविताओं को पढ़ते हैं तो हमें यह अनुभव होता है कि हर वह व्यक्ति जो यह जानना चाहता है कि आखिर कविता की रचना कैसे होती है, उसे रवीन्द्रनाथ को पढ़ना चाहिए। या अगर हम यह जानना चाहें कि आखिर कविता क्या है- तो हमें रवीन्द्रनाथ की कविताएं पढ़नी चाहिए। आचार्य रामचंद्र शुक्ल हमारे महत्वपूर्ण आलोचक हैं। उन्हेंने एक निबंध लिखा- कविता क्या है। रवीन्द्रनाथ मूलतः सर्जनात्मक कलाकार हैं। उन्होंने इसी बात को बहुत पहले अपनी रचनात्मकता के द्वारा कह दिया था।
आखिर एक कवि अपनी कविता में करता क्या है? वह ऐसा क्या करता है कि वह जो लिखता है उसे हम कविता अथवा साहित्य की संज्ञा देते हैं। कविता असल में हमारे चारों तरफ फैले अथवा तो कहें कि व्याप्त वस्तु जगत को शब्दों के माध्यम से सौन्दर्य-बोध में रूपांतरित कर देना है। ये शब्द कभी अलंकारों का वेष धर कर तो कभी छन्द का बाना पहन कर तो कभी विशिष्ट उक्तियों द्वारा कल्पना के माध्यम से इस वस्तुजगत को एक नए विश्व में रूपांतरित कर देते हैं। यह नया विश्व ही कविता का, यानी कला का यानी एक नयी भावना का विश्व बन जाता है जो हमारा परिचित होते हुए भी एकदम नया-सा लगता है। यही कवि की कविता है। तो इसका मतलब यह हुआ कि कवि हमारी परिचित दुनिया में एक नए विश्व का सृजन कर देता है। इस बात को हम कविताओं के उदाहरण से समझने की कोशिश करेंगे।
अगली पोस्ट में इस संबंध में चर्चा होगी।

3 comments:

  1. Dr. Rekha Sharma25 August 2010 at 08:36

    Madam,
    Ravindranath ki kavitaon ki jankari hamne aur vidyarthiyon ne li aur paya ki yah madhyam kafi sahi rahega.Ek prashna yah tha ki sem-1 aur part-2 ke prshno aur moolyankan me kya antar rahega?

    Dholka College.

    ReplyDelete
  2. ravindranath ki kavita ke bare me or jankari dene me humari shyta kare.....

    ReplyDelete
  3. दिपाली, इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है। रवीन्द्रनाथ की कविताओं पर काफी कुछ लिखा गया है। आप किस तरह की जानकारी चाहती हैं। निराला नें रवीन्द्रनाथ की कविताओं पर अच्छा लिखा है। आप कहाँ पर अद्ययन कर रही हैं।

    ReplyDelete