जिन खोजा तिन पाइयां

इस ब्लॉग में विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं के उत्तर देने की कोशिश की जाएगी। हिन्दी साहित्य से जुड़े कोर्सेस पर यहाँ टिप्पणियाँ होंगी,चर्चा हो सकेगी।

Sunday, 24 July 2011

कल्पना की अवधारणा

सर्जन प्रक्रिया
सेमिस्टर-3 में आपको कोर्स नं 502 में फिर एक बार काव्यशास्त्र पढ़ना है। इस कोर्स के अन्तर्गत आज हम यूनिट-2 की बात करेंगे। इस यूनिट में जिस सामग्री का हमें अध्ययन करना है उसे 'सर्जन-प्रक्रिया' शीर्षक के अन्तर्गत रखा गया है। इसमें शामिल मुद्दे इस प्रकार हैं- कल्पना की अवधारणा, कांट, सहृदय, प्रतिभा- विवेचन, साधारणीकरण, विरेचन, लोक-मंगल। आपने सेमिस्टर-1 में कोर्स 403 के यूनिट 5 में कॉलरिज तो पढ़ा ही होगा अतः आप सबको कल्पना संबंधी उनकी परिभाषा का तो पता ही होगा। आप यह सोच रहे होंगे कि एक बार तो पढ़ लिया, अब इसमें अधिक क्या करना है। इस सेमिस्टर में अब आपको यह समझना होगा कि उपरोक्त मुद्दे (कल्पना आदि) जिनको आपने परिभाषा में जाना था वह काव्य की सर्जनात्मकता में कैसे काम करते हैं।
कॉलरिज के लिए कल्पना शक्ति आकारदायिनी और रूपांतरकारी है। जो कल्पना हमें सौन्दर्यानुभूति की अवस्था तक ले जाती है , वह निर्माणात्मक होती है। उनके अनुसार कल्पना शक्ति संश्लेषणात्मक शक्ति है। असल में कल्पना शक्ति का संबंध मानवीय बोध(understanding) से जुड़ा है। मनुष्य में अगर समझ है तो इसका कारण यही है कि उसमें कल्पना शक्ति है। यह शक्ति तो सब मनुष्यों में होती है। कुछ-कुछ हमारी भावयित्री प्रतिभा के निकट ही समझिए इसे।
जैसा कि आप जानते हैं कि कॉलरिज ने गौण कल्पना को सर्जनात्मकता के लिए अनिवार्य माना है। अर्थात् यह गौण कल्पना शक्ति ही है जिसके कारण कविता रची जाती है। अब सवाल यह है कि 'कविता रची जाती है' से हमारा क्या मतलब होता है। कविता में बाहरी पदार्थ जगत और भीतरी भावों का सम्मिलन, संयोजन अथवा ग्रंथन होता है। My Love is like a red red rose में लाल गुलाब [( बाहरी पदार्थ (वस्तुजगत)] का ग्रंथन भीतरी तत्व, भाव- प्रेम से होता है। अर्थात् कविता बाहर-भीतर का समन्वय है। संग्रथन है। कविता की रचना-प्रकिया में कवि के बाहर का वस्तुजगत उसके भीतर के भाव-जगत के साथ जुड़ता है। यह जुड़ना भी कैसा – जैसे एक दूसरे में इस तरह समाहित हो जाना कि परिचित वस्तु-जगत अपरिचित (नया-सा) बन जाता है और गोपन एवं अजाने भाव-बोध पहचाने-से दृष्टिगोचर होने लगते हैं। अर्थात् अगर कल्पना शक्ति है, तभी यह मिलन, समन्वय संग्रथन आदि होता है। इनके-यानी वस्तु-जगत एवं भाव-जगत के समन्वय, सम्मिलन आदि का क्षण ही सर्जनात्मकता का क्षण है। कॉलरिज अपनी परिभाषा में यह स्पष्ट करते हैं कि किन का सम्मिलन आदि कल्पना-शक्ति द्वारा संभव होता है। विचार का बिम्ब के साथ, सामान्य का विशेष के साथ, मानव-निर्मित का प्रकृति-प्रदत्त के साथ सम्मिलन संग्रथन आदि। यह सूची आपको साहित्य सिद्धांतों के इतिहास संबंधी पुस्तक में मिल जाएगी।
इस बात को हम एक कविता के द्वारा समझ सकते हैः कविता का शीर्षक है- 'एक पीली शाम'

एक पीली शाम
पतझर का ज़रा अटका हुआ पत्ता
शान्त ।
मेरी भावनाओं में तुम्हारा मुखकमल
कृश-म्लान हारा-सा
(कि मैं हूँ वह मौन दर्पण में
तुम्हारे कहीं ....)
वासना डूबी
शिथिल पल में
स्नेह काजल में
लिए अद्भुत् रूप कोमलता
अब गिरा अब गिरा वह अटका हुआ आँसू सान्ध्य तारक-सा
अतल में.......

कॉलरिज जिस कल्पना शक्ति की बात करते हैं उसे इस कविता के माध्यम से जब समझने का उपक्रम करते हैं तो पाते हैं कि कविता के आरंभ में पतझर की पीली शाम में किसी पेड़ पर अटके हुए किसी पत्ते का चित्र कवि हमारे सामने रखते हैं। यहाँ शाम वस्तु-जगत है। पर यह कोई भी या हर कोई शाम नहीं है। यह एक पीली शाम है। सामान्य शाम को विशेष शाम में बदलने का काम कल्पना करती है। इस शाम रूपी वस्तु-जगत को कविता में आगे जा कर एक विशेष व्यक्तिगत संदर्भ में रूपांतरित करना है अतः यह कोई एक विशेष शाम है। यहाँ ज़रा शब्द पर भी ध्यान दें क्योंकि यह अब गिरा अब गिरा जितना ही अटका हुआ है। अब यह पीली पतझर की शाम जो वस्तुजगत , पदार्थ है उसे कवि अपने हृदय में स्थित किसी व्यक्ति के स्मरण से जोड़ता हैः मेरी भावनाओं में तुम्हारा मुखकमल। कवि को शाम देख कर याद नहीं आई है , परन्तु कृश-म्लान मुखकमल कवि के भाव-जगत का स्थायी सदस्य/भाव ही है, गोया। वह मुख जो किसी समय कमल की तरह था अब कृश-म्लान-हारा-सा है। कल्पना शक्ति के बल पर ही यह संभव होता है कि अभी तक शाम वस्तु-जगत थी, अब कृश-म्लान चेहरा वस्तु-जगत बन जाता है और नायिका के मौन-दर्पण में रहा कवि का प्रतिबिंब भाव-जगत बन जाता है। कवि को लगता है कि उनके हृदय के भाव-जगत में नायिका का जो चेहरा है, उस नायिका के हृदय में स्वयं उन्हीं का प्रतिबिंब है। अर्थात् प्रेमिका के हृदय के मौन-दर्पण में स्वंय कवि या नायक की छवि। इससे इस कविता की सर्जनात्मकता के लिए आवश्यक कल्पना शक्ति द्विगुणित हो जाती है। हृदय में रहे नायिका के भाव-चित्र को शाम के साथ जोड़ना और नायिका के हृदय में अपनी छवि को पिघलाना , यूँ शाम को देख कर कृश-म्लान नायिका के प्रति रहे उदासी के भाव को कवि इसलिए इतने कम स्पेस में अत्यन्त सुगठित तरीके से रख पाया है क्योंकि उनमें सृजन के लिए अत्यन्त अनिवार्य ऐसी कल्पना शक्ति बहुत गहरी है।
पीली शाम में ज़रा अटका हुआ पत्ता के चित्र को कृश-म्लान यानी बीमार और इसीलिए पीले नायिका के चेहरे पर अटके हुए आँसूं को जोड़ने का काम भी कल्पना-शक्ति के द्वारा होता है। अगर पीली शाम है तो आसमान में तारा भी है। इस तारे को आँसूं से और इन दोनों को पीले पत्ते से कवि जोड़ता है। अब आपके सामने यह चित्र उपस्थित होगा- प्रेम से भरे कवि के हृदय में स्थित नायिका का उदास-पीला चेहरा जिस पर एक अटका हुआ आँसू जो ज़रा से अटके हुए पत्ते की तरह है जो अतल में गिरते तारे के समान है । नायिका भी शीघ्र ही अतल में गिरने ही वाली है- यह संकेत भी मिलता है। अब गिरा अब गिरा की स्थिति में आँसू-पत्ता-तारा । बाहर उदास शाम और भीतर उदास पीला चेहरा। आँसू भीतर और तारा-पत्ता बाहर। भावनाओं के सैलाब में वासना का स्नेह काजल में डूबना यानी भावनाओं की बेतरतीबी को व्यवस्था एवं तरतीबी देना। अभिव्यक्ति की व्यवस्था और भावावेगों को संतुलित करने का काम भी कल्पना शक्ति ही करती है। जिस कविता में यह संतुलन जितना अधिक होगा, उतनी ही कल्पना-शक्ति दृढ़ एवं समृद्ध है, ऐसे माना जा सकता है। कल्पना शक्ति के अभाव में भावावेग प्रलाप बन जाते हैं और कल्पना शक्ति के कारण वे कविता बनते हैं।
इस तरह आप देख सकते हैं कि कल्पना शक्ति सृजन प्रक्रिया में किस तरह काम करती है।



5 comments:

  1. maine vigyapan dekha mem jise dekhakar mujhe esa laga ki semester system se hum M.A.karke kitani sari kalaO me mahir ho jayenge...is ke liye mujhe ab garva hota hai. thanks mem. FROM.PAL SUMAN S.

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  2. aapne jis prakar sarjan prakriya ke antargat kalpana ki avadharna hame "ek pili sham " kavita ke madhyam se samjhaya jis se hamra pura concept clear ho gaya or vah padhakar mujhe bahot accha laga. FROM: PAL SUMAN S.

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  3. आपको सृजन-प्रक्रिया वाली पोस्ट अच्छी लगी और कल्पना की संकल्पना आपकी समझ में आ गई यह जान कर संतोष हुआ। इसमें कोई संदेह नहीं कि आप अगर एम.ए के इस पाठ्यक्रम को ठीक से पढेंगे तो आपके लिए भविष्य बनाना कोई कठिन कार्य नहीं होगा। इस समय हिन्दी की माँग बहुत है विश्व में और बाज़ार में भी। हमें अपना लक्ष्य बहुत ऊँचा और बहुत आगे रखना चाहिए और उसके लिए तैयार हो जाना चाहिए। मेरा आपको तथा अन्य विद्यार्थियों को यह निमंत्रण है कि आप भी अपने पाठ्यक्रम को पढें तथा अपने विचार रखें जिससे उस पर चर्चा हो सकती है। यह ब्लॉग सभी के लिए है। जैसे क्लास रूम में केवल अध्यापक को ही नहीं बोलना चाहिए उसी तरह ब्लॉग पर भी मैं लिखूं और आप पढ़ें ऐसा नही होना चाहिए।

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  4. apke blog se hume bhut jayada fayda ho raha he or hume hindi padne taha use jane me our anand ho raha heis ke liye apka dhanyavad...........aruna mali

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  5. अरुणा आपको इस ब्लॉग से लाभ हो रहा है, यह जान कर अच्छा लगा। आप कहाँ हैं और क्या पढ़ रही हैं. मेरे ब्लॉग के माध्यम से आपको हिन्दी जानने में आनंद आ रहा है, यह मेरे लिए उत्साहवर्द्धक है।
    रंजना

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