जिन खोजा तिन पाइयां

इस ब्लॉग में विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं के उत्तर देने की कोशिश की जाएगी। हिन्दी साहित्य से जुड़े कोर्सेस पर यहाँ टिप्पणियाँ होंगी,चर्चा हो सकेगी।

Tuesday, 21 August 2012



विद्यार्थी मित्रो,
इस बार हम सत्र में बहुत देर से मिले हैं। इसका कारण भी था। एक तो चौथे सेमिस्टर के परिणाम अभी-अभी घोषित हुए हैं, और दूसरा, हमारी सेमिस्टर पद्धति के ढाँचे में परिवर्तन होने की संभावना थी। कल ही नया परिपत्र आया है। अतः मैंने सोचा कि अब हम इस वर्ष की शुरुआत कर सकते हैं।
तो इस सेमिस्टर की पहली चिट्ठी में तीन मुद्दे।
  • सबसे पहले तो हम सेमिस्टर -4 में उत्तीर्ण हुए अपने सभी विद्यार्थी मित्रों को बधायी देते हैं। भाषा भवन के हिन्दी विभाग का परिणाम 100% आया है। विभाग के लिए बहुत ख़ुशी की बात है। नई परीक्षा की पद्धति, नया सिलेबस , सामग्री ढूँढने में कठिनाई और न जाने कितना कुछ। इन तमाम संकटों को पार करते हुए इन छात्रों ने अच्छा प्रदर्शन किया। सबसे बड़ी बात यह है कि इन चारों सेमिस्टर में अध्ययन करते हुए इन सभी छात्रों ने एक उत्साह का वातावरण बनाए रखा। भाषा-भवन के हिन्दी विभाग में सुश्री सुमन पाल को सर्वाधिक अंक मिले हैं। लगभग 69% अंक मिले हैं। सुमन पाल को हम सब की ओर से भी बधायी।
  • दूसरी बात । हमने ब्लॉग पर एक फीडबैक फॉर्म डाला था। मुझे अफसोस है कि किसी ने भी वह फॉर्म भर कर भेजा नहीं है। इसका अर्थ तो यही है कि आप लोगों को कुछ कहना ही नहीं है। आप इस बात को कभी न भूलें कि जो चुप रहते हैं वे खो जाते हैं।
  • तीसरी बात। अब इस वर्ष से हमारी पाठ्यक्रम-व्यवस्था में परिवर्तन आया है। इस विषय में कुछ बात हो जाए। अब तक हमारे हर कोर्स में  पाँच यूनिट हुआ करते थे। अब हमारे कोर्स में चार यूनिट होंगे। नया पाठ्यक्रम जल्दी ही आपको उपलब्ध कर दिया जाएगा। प्रश्न-पत्र की पद्धति में भी परिवर्तन आया है। अब यह पद्धति इस तरह होगी-
  • प्रत्येक यूनिट में से एक प्रश्न 14 अंक का पूछा जाएगा।  यूनिट की प्रकृति के अनुसार उन्हीं चौदह अंकों में से एक लंबा प्रश्न होगा तथा एक लघु प्रश्न। यूं 14*4=56 अंक हुए। पाँचवा प्रश्न वस्तुगत (एम.सी.क्यू) होगा जिसमें चारों यूनिट में से प्रश्न पूछे जाएंगे। ये प्रश्न एक अथवा दो अंकों के हो सकते हैं। इसमें खाली स्थानों को भरा जाना, सही –गलत, जोडे बनाएं, विकल्प चुनिए आदि प्रकार के प्रश्न होंगे। यानी कुल हिसाब लगाएं तो, यूं समझिए चारों यूनिट में से 3-3 तथा एकाध में से अधिक पूछे जा सकते हैं। बात वही है, पर प्रश्न पूछने की पद्धति बदल जाएगी। अब इसमें लंबा प्रश्न का उत्तर आपको वर्तमान शब्द-मर्यादा 200 के स्थान पर, हो सकता है 400-500 शब्दों के बीच लिखना होगा। उसी तरह छोटा प्रश्न 75- 100 शब्दों की मर्यादा में लिखना होगा।
  • कुछ परिवर्तन सेमिस्टर चार में हैं। पर उसकी बात बाद में करेंगे।
मुझे उम्मीद है कि आप इस नई पद्धति के संबंध में अपनी प्रतिक्रिया देंगे।
  

Friday, 6 July 2012

आदर्श अध्यापक-डॉ भोलाभाई पटेल

आज 5 जुलाई से सत्रारंभ हुआ। मई 2012 में डॉ. भोलाभाई पटेल का अवसान हुआ। सत्रारंभ में ही हिन्दी विभाग ने अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए। हिॆंदी विभाग के अध्यापकों के तथा तृतीय  सेमिस्टर के छात्रों के साथ-साथ विभाग के शोध छात्र, भूतपूर्व छात्रों की सभा ने अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए । अंत में एक शोक-प्रस्ताव पढ़ा गया।


हिन्दी-विभाग
भाषा साहित्य भवन, गुजरात युनिवर्सिटी
शोक प्रस्ताव

भाषा साहित्य भवन के हिन्दी विभाग के अध्यापकों, विद्यार्थियों, पूर्व- विद्यार्थियों की यह सभा आज नए सत्र के आरंभ में स्वर्गीय डॉ. भोलाभाई पटेल, पूर्वाध्यक्ष हिन्दी विभाग, भाषा साहित्य भवन , के निधन पर शोक व्यक्त करने हेतु एकत्रित हुई है।
दिनांक 20 मई 2012 को  प्रातः डॉ. भोलाभाई पटेल का अवसान हुआ। डॉ. भोला भाई पटेल इस विभाग में सन् 1969 में व्याख्याता के रूप में नियुक्त हुए थे तथा सन् 1994 में वे प्रोफेसर एवं अध्यक्ष के रूप में निवृत्त हुए। इस लंबे कार्य-काल के दौरान प्रो. भोलाभाई पटेल के मार्गदर्शन में अनेक विद्यार्थियों ने अध्ययन किया। डॉ. पटेल वास्तव में एक आदर्श एवं श्रेष्ठ अध्यापक के साक्षात् विग्रह थे। अपने कार्यकाल के दौरान आपने अंग्रेज़ी, संस्कृत, भाषा-विज्ञान, जर्मन, तथा तुलनात्मक साहित्य का अधययन कर उपाधियाँ प्राप्त की तथा यह सिद्ध किया कि अध्यापक होते हुए भी सतत विद्याभ्यास करना किसी भी अध्यापक का आदर्श लक्ष्य हो सकता है। डॉ. पटेल गुजराती भाषा के साहित्यकार तो थे ही परन्तु उनकी ख्याति एक आदर्श शिक्षक के रूप में विशेष रही।
हिन्दी के पाठ्यक्रमों में अनुवाद तथा तुलनात्मक साहित्य को समाविष्ट करना, भारत के अन्य विश्वविद्यालयों की तुलना में गुजरात विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में नए रचनाकारों को पाठ्यक्रमों में शामिल करने का श्रेय डा.पटेल को दिया जा सकता है। नए विषयों पर शोध करवाने का श्रेय भी डॉ. पटेल को दिया जा सकता है।
आदर्श शिक्षक के अलावा हमारा सारस्वत समाज उन्हें एक उत्तम अनुवादक तथा भाषा-विद् के रूप में भी सदैव याद रखेगा। उत्तर गुजरात के एक छोटे से गाँव में जन्मे डॉ. पटेल हिन्दी, अंग्रेज़ी, संस्कृत, मराठी, जर्मन, बंगाली, असामी तथा उड़िया भाषा के भी जानकार थे। उनके इस भाषा ज्ञान तथा अनुवाद कौशल के कारण वे राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक विशेष पहचान बना पाए थे।
डॉ.भोलाभाई पटेल अपने जीवनकाल में अनेक साहित्यक संस्थाओं से जुड़े रहे। इनमें प्रमुख हैं- गुजरात साहित्य अकादमी, गांधीनगर, गुजराती साहित्य परिषद्, अहमदाबाद, केन्द्रीय साहित्य अकादमी, दिल्ली, आदि। अपने निधन से पूर्व वे गुजराती साहित्य परिषद् के अध्यक्ष पद पर कार्यरत थे।
डॉ. पटेल ने अपने जीवन काल में अनेक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त किए। इनमें से प्रमुख हैं – साहित्य अकादमी दिल्ली का अनुवाद तथा मौलिक लेखन के लिए पुरस्कार, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान का सम्मान, रणजितराम सुवर्ण चंद्रक तथा भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया जाना। आपको निवृत्ति के बाद बिरला फाउण्डेशन की फैलोशिप भी मिली थी जिसके अन्तर्गत आपने भारतीय उपन्यास पर एक महत्वपूर्ण काम किया। इसके अलावा आप को निवृति के पश्चात् यू.जी.सी. की एमेरिटस फैलोशिप भी मिली थी। सतत अध्ययनशीलता डॉ. पटेल के व्यक्तिव का अविभाज्य अंश था, जो इस विभाग को प्राप्त  एक अमूल्य विरासत कही जा सकती है।
गुजरात युनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग की यह सभा अपने अग्रज को हार्दिक श्रद्धांजलि देते हुए इस बात के प्रति अपने को कटिबद्ध पाती है कि उनके बताए मार्ग पर चलते हुए उसे अधिक विस्तार एवं आयाम दें, साथ ही विभाग उनके परिवारजनों के प्रति इस शोक-वेला में सह-अनुभूति की भावना भी व्यक्त करता है।

हिन्दी विभाग के समस्त सदस्यों की ओर से-     
                                                                                                                               रंजना अरगडे
                                                                   अध्यक्ष- हिन्दी विभाग
 5 जुलाई 2012

Sunday, 13 May 2012

शमशेरजी को हमारे बीच से विदा हुए 12 मई के रोज़ 20 वर्ष हुए। 12 मई 2012 को उनकी सामग्री अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा को सौंपी गयी। कदाचित् यह इस तरह का प्रथम प्रयास है। महत्वपूर्ण बात यह है कि अब शमशेरजी पर शोद करने वालों के लिए एक ऐसी जगह हो गयी है जहाँ देश-विदेश के शोध छात्र आकर काम कर सकेंगे। उनकी सामग्री से जो आय होगी उसे विश्वविद्यालय छात्रों को छात्रवृत्ति देने के तथा मेडल देने के उपयोग उपरान्त शमशेरजी पर विभिन्न आयोजन करने में खर्च करेगा।
शमशेरजी अपने अंतिम समय में अहमदाबाद में रहे थे। यह इस शहर का तथा राज्य का भी सौभाग्य माना जाएगा।


Saturday, 31 March 2012

प्रश्न बैंक 508


HIN508
इस कोर्स का चौथा और पाँचवा यूनिट जिसमें शोध प्रविधि तथा शोध पत्र लेखन का सैद्धांतिक पक्ष है जो कई लोगों के लिए समस्या खड़ी करने वाला है , ऐसा मुझ तक जो बातचीत आई, उससे मैंने अनुमान लगाया। हालाँकि जो पावर पॉइंट मैंने डाले हैं उससे अधिक समस्या होनी तो नहीं चाहिए। परन्तु जो हो, मैंने शोध-प्रविधि वाले यूनिट के संबंध में एक क्वेश्चन बैंक जैसा कुछ इस पोस्ट में  डाला है। इससे आपको यह दिशा निर्देशन मिल सकता है कि इसमें आपको किस तरह की तैयारी करनी होगी। शोध पत्र लेखन वाले यूनिट पर प्रश्नबैंक अगली पोस्ट में डालूंगी। आप अपनी प्रतिक्रिया दें। आपने पिछले पोस्ट संबंधी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
200 शब्दों के प्रश्न
1.      अन्य लेखन की तुलना में शोध लेखन की शैली किस तरह भिन्न होती है, समझाएं।
2.      शोध प्रबंध लेखन में सानुपातिकता होनी चाहिए- इससे आप क्या समझते हैं.?
3.      शोध-प्रक्रिया की दृष्टि से शोध प्रविधि के तत्वों पर प्रकाश डालिए।
4.      शोध व्यवस्था की दृष्टि से शोध प्रविधि के तत्वों पर प्रकाश डालिए।
5.      ज्ञान के विषयों के आधार पर शोध-प्रविधि में क्या अंतर है, समझाएं।
6.      "ज्ञान के विभिन्न विषयों में प्रकृति तथा स्वरूप में ही अंतर नहीं होता अपितु उनकी शोध-प्रविधि में भी अंतर होता है"- इस विधान को समझाएं।
7.      साहित्यक शोध में समाजशास्त्र, विज्ञान तथा मनोविज्ञान की प्रविधि के प्रयोग का क्या तात्पर्य है, उदाहरण दे कर समझाएं।
8.      हिन्दी शोध प्रबंधों की प्रचलित शौलियों पर विचार करें।
9.      "शोध प्रविधि की वैज्ञानिकता साहित्य के प्राणतत्व रस का विरोध तथा उन्मूलन नहीं करती अपितु रक्षा करती है" इस विधान को समझाएं।
50 शब्दों के प्रश्न
1.      शोध प्रबंध का भूमिका लेखन।
2.      शोध प्रबंध का निष्कर्ष  लेखन।
3.      शोध प्रबंध में ग्रंथ सूची का महत्व।
4.      शोध प्रबंध में नामानुक्रमणिका का तात्पर्य।
5.      शोध प्रबंध का मूल भाग।
6.      सामग्री संकलन।
7.      शोध प्रबंध मे विषय निर्वाचन का महत्व।
8.      शोध प्रबंध में परिशिष्ट का महत्व।
9.      शोध प्रबंध लेखन में लिए गए तथ्यों का स्वरूप।
10.  शोध-प्रबंध लेखन में वैयक्तिक तथा निर्वैयक्तिक शैलियों का तात्पर्य समझाएं।
11.  आलोचनात्मक प्रविधि।
1 अथवा 2 वाक्यों के प्रश्न
1.      क्या शोध-व्यवस्था शोघ प्रविधि का पर्याय है?
2.      शोध व्यवस्था में वे कौन से मुद्दे हैं जो शोध-प्रविधि कहे जा सकते हैं?
3.      अज्ञान अथवा विस्मृति के कारण अवशिष्ट शोध-तत्व किसमें समाहित किये जा सकते हैं?
4.      भूमिका लेखन , प्रबंध लेखन तथा निष्कर्ष के बीच किस तरह का संबंध होना चाहिए?
5.      शोध-प्रक्रिया किसे कहते हैं?
6.      शोध प्रक्रिया में किस तरह की दृष्टि उसे शोध-प्रविधि कह सकते हैं?
7.      ग्रंथ-सूची की वैज्ञानिकता का क्या तात्पर्य है?
8.      शोध लेखन का विश्वविद्यालय चयन से क्या संबंध है?
9.      सामग्री का विश्लेषण करते समय शोधक में  तटस्थता की आवश्यकता क्यों होनी चाहिए?
10.  तथ्य समायोजन करते समय वैज्ञानिकता की क्या आवश्यकता है?
11.  तथ्यों का समायोजन करते हुए उनकी परिशुद्धि कर के सत्यापन करने की आवश्यकता क्या है?
12.  ग्रंथ सूची कब शोध प्रविधि का अंग बनती है?
13.  ज्ञान के विभिन विषयों की प्रकृति तथा स्वरूप के अलावा और किस में अंतर होता है?
14.  साहित्य तथा भाषा शोध में किस प्रविधि का प्रयोग होता है?
15.  शोध-प्रबंध के लिए कौन-सी शैली अनुपयुक्त तथा अवैज्ञानिक मानी जाती है?
16.  शोध प्रबंध की कौन-सी शैली आगमनात्मक तथा कौन-सी निगमनात्मक कहलाती है?
17.  वैज्ञानिक शोध-प्रविधि का क्या अर्थ है?

Tuesday, 20 March 2012

Department of Hindi
Semester based Credit system Course
Semester-4
From June 2011
HIN 507 हिन्दी भाषा प्रशिक्षण एवं कोश विज्ञान   Course Credit -4
यहाँ इस कोर्स से संबंधित कुछ प्रश्न दिए जा रहे हैं। इस बीच यह सवाल सभी के मन में रहा कि आखिर इसमें प्रश्न कैसे पूछे जा सकते हैं। कई केन्द्रों के छात्रों के मन में यह प्रश्न भी था कि इसे ठीक तरह से पढ़ाया नहीं गया है। यह स्वाभाविक है, क्योंकि यह नितांत नया पाठ्यक्रम है और इसे स विश्वविद्यालय में प्रथम बार ही संकल्पित किया गया है और लागू भी किया गया है।  संभवतः इन प्रश्नों के आधार पर समस्या का निराकरण हो सकेगा। इस बात को ध्यान में रखा जाए कि यह कोर्स विद्यार्थी की भाषा संबंधी, भाषा के प्रयोग संबंधी समझ से जुड़ा है। आज आप हिन्दी पढ़ कर कहीं नौकरी करने जाएंगे तो अगर आप की भाषा ठीक नहीं होगी तो आपके लिए कठिनाई बढ़ेगी। आपका पिछला और वर्तमान कोर्स इसी बात की ओर संकेत करता है। भाषा को रचना के स्तर पर जानना और उसका प्रयोग करना, यही इसका उद्देश्य है। यहाँ आपकी सहायता के लिए कुछ प्रश्न दिए जा रहे हैं ताकि आप इस बात का अंदाज़ा लग सकें कि अभी आपको किस दिशा में अधिक आगे बढ़ने की आवश्यकता है। इस बात का ध्यान रखें की यह केवल पाठ्यक्रम की दिशा सूचक जानकारी है। प्रश्न का स्वरूप बिल्कुल ऐसा ही होगा, यह ज़रूरी नहीं है।
इस कोर्स के प्रथम दो यूनिट के प्रश्न भी बाद की पोस्ट में डाले जाएंगे। अभी यूनिट 3,4 तथा 5 संबंधी जानकारी आपके लिए डाली जा रही है।

यूनिट -3 निबंध लेखन
·         निबंध की भाषा

1.      कथात्मक स्वरूपों की अपेक्षा निबंध में भाषा का महत्व क्या है?
2.      निबंध की वस्तु (विषय) भाषा के माध्यम से किस तरह विकसित होती है?
3.      तत्सम प्रधान भाषा किस तरह के निबंधों में प्रयुक्त होती है। उदाहरण के माध्यम से समझाएं?
4.      बालकृष्ण भट्ट अथवा अपनी पसंद के किसी अन्य निबंधकार की भाषागत विशेषताएं लिखिए।
5.      तद्भव भाषा अथवा बोलचाल की सामान्य भाषा में लिखे निबंधों की विशेषताएं बताइए।
6.      नारी अथवा स्त्री निबंध की भाषा में निहित अंतर समझाएं।
7.      अपने पढ़े किसी भी निबंध के आधार पर सामासिक भाषा तथा सरल भाषा के उदाहरण दें।
8.      विज्ञापन युग निबंध की भाषा पर प्रकाश डालें।
9.      हिन्दी का महत्व नामक विषय पर बोलचाल की अथवा तत्सम प्रधान भाषा में निबंध लिखें।
10.  अगर गद्य कविता की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी है- इस विधान को समझाएं।
11.  (406 वाले कोर्स के निबंधों को आधार बना कर भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं।)


·         निबंध की शैली

1.      निबंध के स्वरूप में शैली का संबंध लेखक के व्यक्तित्व के साथ किस तरह जुड़ा है- उदाहरण दे कर समझाएं।
2.      शैली निबंध का प्राण है- इस कथन पर अपने विचार लिखें।
3.      निबंध की विभिन्न शैलियों पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं। जैसे वर्णनात्मक, विवरणात्मक, सामासिक आदि।
4.      निबंध के स्वरूप में शैली का संबंध किन किन तत्वों से जुड़ा है, समझाएं।

Ø  1 अंक के प्रश्न
1.      शैली के लिए प्रयुक्त अन्य समानार्थी शब्दों के नाम लिखें।
2.      (इसमें कुछ उदाहरण दे कर यह पूछा जा सकता है कि शैली कौन सी है अथवा भाषा किस प्रकार की है। ये उदाहरण प्रसिद्ध रचनाओं में से लिए जाएंगे। अथवा 406 में जो आप पढ़ चुके हैं उसमें से पूछा जा सकता है।
·         विभिन्न प्रकार के निबंधों में प्रयुक्त भाषा का पाठ
1.      इसमें कुछ प्रसिद्ध निबंधों के उदाहरण दे कर  उनके भाषा पाठों के संदर्भ में प्रश्न पूछे जा सकते हैं। परीक्षार्थी से अपेक्षित यह है कि उसे भाषा पाठों के बारे में जानकारी होनी चाहिए।

Ø  इसमें आपको बाकायदा निबंधात्मक लेखन करना होगा।(200 शब्दों में)। इसमें आपने अब तक जो पढ़ा है, उसी को आधार बना कर पूछा जा सकता है। इस संदर्भ में ब्लॉग में जानकारी दी है।
1)      
1.      कोश- निर्माण
·         विभिन्न प्रकार के कोशों का परिचय, महत्व एवं उपयोगिता
·         हिन्दी कोशों का परिचय
·         कोश निर्माण के सिद्धांत
·         कोश निर्माण में आने वाली बाधाएं
 इसमें  जिस प्रकार के प्रश्न आ सकते हैं वह स्वतः स्पष्ट हैं अतः अधिक बताने की आवश्यकता नहीं है।


Thursday, 15 March 2012


HIN 509/Unit-5
(2)


अनुवाद और उत्तर-आधुनिकता के संदर्भ में हमने कल क्लास में कुछ बातें समझीं थी। हमने इस बात को जानने का प्रयत्न किया था कि उत्तर आधुनिता के आने पर एक भाषा में लिखा हुआ पाठ जब दूसरी भाषा में जाता है, तब वह एर स्वतंत्र रचना पाठ हो जाता है। हमने इस बात को भी समझा था कि उत्तर आधुनिकता के आने के बाद अनुवाद को देखने का लोगों का नज़रिया बदला । अब वह रचना के बराबर दर्ज़े का समझा जाने लगा है। अनुवाद करना अब दोयम दर्जे का काम नहीं रहा। इसका करारण यह है कि अनुवाद करते समय हम स्रोत पाठ की व्याकरणिक व्यवस्था ही नहीं अपितु एस.एल( सोर्स टैक्स्ट, स्रोत पाठ) में रही सामाजिकता, सांस्कृतिकता,एवं राजनैतिक पक्ष भी टी.एल( टार्जेट टेक्स्ट- लक्ष्य पाठ) में स्थानातरित करते हैं। हमने इस बात की भी चर्चा की थी कि पहले केवल अनुवाद कार्य होता था फिर जब उसके सैद्धांतिक पक्ष की चर्चा होने लगी – मसलन परिभाषा अनुवाद स्वरूप अनुवाद कला-विज्ञान-कौशल अनुवाद की प्रक्रिया, मूल्यांकन आदि तो एक शब्द आया- Translatology( अनुवाद-विज्ञान)। अर्थात् अनुवाद पहले एक कार्य था फिर जब उसता शास्त्र बनने लगा तो अनुवाद विज्ञान की संकल्पना आई। उत्तर आधुनिकता के आने के बाद ही हम अनुवाद-अध्ययन जैसे शब्द की चर्चा करने लगे। अर्थात् एक वाक्य में इसे कहें तो
अनुवाद का कार्य प्राचीन समय से होता आया है जब उसका शास्त्र निर्मित हुआ तो वह अनुवाद-विज्ञान हुआ और उत्तर आधुनिकता के बाद वह अनुवाद –अद्ययन हुआ। यानी कि पहला सूत्र हमने यह जाना
अनुवाद            अनुवाद-विज्ञान          अनुवाद-अध्ययन
(कार्य              मिद्धांत                विमर्श)
आज हम इसी संदर्भ में एक और बात समझने का प्रयत्न करेंगे।
आज हमारे समझने का सूत्र होगा-
पाठ               अन्तर्पाठ              हायपर पाठ
(text                                                inter-text                            hyper text)
इस सूत्र को समझने के लिए कुछ पीछे चलें। हमने मेमिस्टर-2 में विखंडनवाद पढ़ा था। लगभग सभी ने इस बात को समझ लिया है ( या क्-से-कम लिखा ते था ही) कि विखंडन पाठ की एक शैली है।
सबसे पहले पाठ शब्द की ओर अपना ध्यान दें। अनुवाद विज्ञान में सबसे पहले दो शब्दों से हमारा सामना हुआ- स्रोत पाठ तथा लक्ष्य पाठ। इस पर से हमने यह समझा कि सेरोत भाषा में लिखा हुआ कुछ भी पाठ कहलाता है चाहे वह एक वाक्य हो अथवा महाकाव्य हो। यानी जिसका अनुवाद किया जाता है और जो अनूदित होता है वह सब कुछ पाठ होता है।
अनुवाद अध्ययन में
                  लिखी हुई हर चीज़ पाठ(text) है।
                                             पढ़ने की शैली को पाठ कहते हैं।
हर पाठ में                 अन्तर्पाठीयता होती है।
Ø  अन्त्रपाठीयता का अर्थ है कि हर पाठ आपको किसी अन्य पाठ की ओर ले जाता है।
Ø  जैसे तुलसीदास के रामचरित मानस में वाल्मिकी के रामायण का पाठ छिपा है।
Ø  नदी के द्वीप में मृच्छकटिक तथा बाणभट्ट की आत्मकथा का पाठ छिपा है।
Ø  गोदान में भारतीय सामन्ती व्यवस्था, दलित विमर्श तथा स्त्री विमर्श का पाठ छिपा है।
अर्थात्
           एक कृति को पढ़ते हुए हमें अन्य कृतियों के पाठ का स्रण होता है।
           अथवा
    अन्य सामाजिक तथा सांस्कृतिक पाठ छिपे होते हैं जिनका हमें उस पाठ को पढ़ते संय स्मरण होता है। जैसाकि हमने पिछली क्लास में पढ़ा था कि अनुवाद में हं केवल भाषा की व्याकरणिक व्यवस्था का ही पुनः स्थापन नहीं करते बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पाठ का भी पुनः स्थापन करते हैं।
    अब हम अन्तर्पाठीयता से हायपर टैकेस्ट की ओर आते हैं। आपने ही कल मुझे पिछली क्लास में बताय था कि उत्र आदुनिकता से एक अर्थ यह समझ में आता है कि इसका संबंध सूचना प्रौद्योगिकी से भी जुड़ता है। यानी सूचना प्रौद्योगिकी उत्तर आधुनिकता का एक लक्षण है। तो इसका अर्थ यह लेंगे कि सूचना प्रौद्योगिकी संबंध का इंटरनैट है। हायपर टेक्स्ट का संबंध इसी भाषा प्रौद्योगिकी से है, यानी आपके इंटरनैट से भी है। आप इसे इस तरह समझते हैं।
आपने सेमिस्टर-3 में नेट तथा हिन्दी कंप्यूटिंग पढ़ा था। आपने यूनिकोड़ के अन्त्रगत यह समझा था कि कंप्यूटर की अपनी कोई भाषा नहीं होती। (यानी हिन्दी, गुजराती, अंग्रेज़ी आदि)  आप अपने कंप्यूटर पर कोई अक्षर लिखते हैं- मसलन र या R । कंप्यूटर उसे बाइनरी डिजिट में समझता है। वह आपके लिखे को अपनी भाषा में लिखता है। जैसे नीचे दो चित्र दिए गए हैं। चित्र-1 गूगल के सर्च इंजन का मुख पृ।ठ है। उसे कंप्यूटर ने जिस तरह पढ़ा है उसे चित्र -2 में दिया गया है।( यह असल में बहुत अधिक विस्तृत है।)
(चित्र-1)
India


Google.co.in offered in: Hindi Bengali Telugu Marathi Tamil Gujarati Kannada Malayalam Punjabi
(इसमें गूगल का चित्र प्रतिलिपित नहीं हुआ है।

    ( चित्र-2)
<!doctype html><html itemscope itemtype="http://schema.org/WebPage"><head><meta http-equiv="content-type" content="text/html; charset=UTF-8"><meta itemprop="image" content="/images/google_favicon_128.png"><title>Google</title><script>window.google={kEI:"XFxhT_fbHsP4rQfZ98SCBA",getEI:function(a){var d;while(a&&!(a.getAttribute&&(d=a.getAttribute("eid"))))a=a.parentNode;return d||google.kEI},https:function(){return window.location.protocol=="https:"},kEXPI:"17259,23756,24878,27400,31701,35703,36683,36888,37003,37102,37153,37453,37568",kCSI:{e:"17259,23756,24878,27400,31701,35703,36683,36888,37003,37102,37153,37453,37568",ei:"XFxhT_fbHsP4rQfZ98SCBA"},authuser:0,
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delete k[i];return}e.src=j;g.li=i+1},lc:[],li:0,j:{en:1,l:function(){google.fl=true},e:function(){

(यह बहुत विस्तृत है जिसका एक छोटा-सा अंश यहाँ दिया गया है)
   
अर्थात्
    हम जो लिखते हैं उसे कंप्यूटर अलग ढंग  पढ़ता है। अपने ढंग से लिखता है। उसके पाठ की दृश्यात्मकता तथा हमारे पाठ की दृश्यात्मकता में अंतर है। इसी को मूलतः हापर जैक्स्ट कहते है। मोटे तौर पर कंप्यूटर पर लिखा कुछ भी हायपर टैक्स्ट होता है। इसका मतलब यह हुआ कि कंप्यूटर हमारे पाठ को अपनी अभिव्यक्ति पद्धति (भाषा) में हम तर संप्रेषित करता है। बिना अर्थ को परिवर्तित किए। हमारा पाठ कंप्यूटर अपनी तरह पढ़ता है। हायपर टैक्स्ट की दृश्यात्मकता स्क्रीन पर की दृश्यात्मकता से अलग दिखती है पर है वह वही।
अनुवाद में हम क्या करते हैं ?
बिना अर्थ बदले स्रोत पाठ को अपनी अभिव्यक्ति पद्धति (भाषा) में स्थानातरित करते हैं।
यही अनुवाद की उत्तर आधुनिक तकनीकी समझ है।
लेकिन हमारी बात अबी अधूरी है।शेष अगली पोस्ट में।

HIN509-अनुवाद में उत्तर आधुनिकता
(1)
"अनुवाद में उत्तर-आधुनिकता" हमारे HIN509 कोर्स का पाँचवा यूनिट है। अनुवाद और उत्तर आधुनिकता की चर्चा कोई नई नहीं है। उत्तर आधुनिकता का प्रभाव जिस तरह साहित्य पर पड़ा उसी तरह अनुवाद पर भी पड़ा। इसकी चर्चा करने के पूर्व हम इसकी एक भूमिका समझ लें।
जेम्स होम्स ने 1972 में 'दू नेम एंड नेचर ऑफ ट्रांस्लेशन स्टडीज' में जैसे अनुवाद अध्ययन की शुरुवात का घोषणा-पत्र जारी कर दिया। अगर इस वर्ष को आधार मानें तो यह कहना पडेगा कि कि अभी अनुवाद अध्ययन को पूरे पचास वर्ष भी नहीं हुए हैं। अभी यह विद्या शाखा अपने बचपन या किशोर अवस्था में ही है। परन्तु तेज गति से दौड़ते इस समय को देखते हुए ज्ञान शाखाएं बहुत जल्दी और तेज़ी से बड़ी हो रही हैं अतः हम कह सकते हैं कि इस विद्या शाखा का यह फुल्ल-यौवन काल है।
अनुवाद संबंधी हमारी समझ को हम तीन हिस्सों में बाँट सकते हैं
1-       

अनुवाद कार्य (यह अनुवाद से जुड़ा सबसे प्राचीन स्वरूप है।
2-       अनुवाद सिद्धांत-( Translatology)
3-       अनुवाद अध्ययन-1972 से (Translation Studies)
अनुवाद अध्ययन का संबंध उसके उत्पादन तथा उसके वर्णन से भी संबंद्ध है। एक ऐसे सिद्धांत की खोज जो अनुवाद उत्पादन के लिए भी भी मार्ग दर्शिका रहे। अतः अनुवाद अध्ययन के दो भाग किए जा सकते हैं-
1-      शुद्ध अनुवाद अध्ययन जिसमें सैद्धांतिक तथा वर्णात्मक अनुवाद अध्ययन तथा
2-प्रायोगिक अनुवाद अध्ययन
Ø  शुद्ध अनुवाद अध्ययन के अन्तर्गत सैद्धांतिक में इन बातों को शामिल किया जा सकता है-
1. सामान्य अनुवाद अध्ययन तथा     2. आंशिक अनुवाद अध्ययन
·         आंशिक अनुवाद के अतर्गत निम्नलिखित  मुद्दों का समावेश संभव है-
a) माध्यम द्वारा मर्यादित
b) क्षेत्र द्वारा मर्यादित
c) रैंक द्वारा मर्यादित
d) पाठ द्वारा मर्यादित
e) समय द्वारा मर्यादित
f) समस्या द्वारा मर्यादित

·         (2) शुद्ध अनुवाद अध्ययन के अन्तर्गत वर्णनात्मक अनुवाद अध्ययन में इन बातों का समावेश  संभव है


a)  उत्पाद आधारित-     जिसमें पहले से ही अनूदित प्राप्त अनुवाद की चर्चा हो


b)  प्रक्रिया आधारित-     जिसमें प्रक्रिया दौरान होने वाले मानसिक प्रक्रियाओं की बात हो।


c)  प्रकार्य आधारित- जिसमें इस बात का अध्ययन हो कि लक्ष्य भाषा की संस्कृति में इन अनुवादों का क्या असर पड़ सकता है या अनुवाद की क्या भूमिका हो सकती।


Ø  अनुवाद के प्रायोगिक पक्ष का संबंध अनुवाद प्रशिक्षण, अनुवाद उपकरण तथा अनुवाद समीक्षा से संबंधित है।


आज अनुवाद के उत्तर आधुनिक संदर्भ के साथ-साथ उसके उत्तर-औपनिवेशिक संदर्भ को भी देखा जा रहा है, अतः एक महत्व का प्रश्न यह भी उठता है कि पश्चिमी जगत ने जो अनुवाद की समझ, संकल्पना तथा सिद्धांत दिए हैं, क्या हम अपने अनुवादों के परिप्रेक्ष्य में उन्हे अपने तरीके से नहीं देख सकते।

इस भूमिका के बाद जब हम अनुवाद के उत्तर आधुनिक स्वरूप की बात करते हैं तो भाषा प्रौद्योगिकी , संगणक, बाज़ार, विज्ञापन आदि की बात तो करते ही हैं पर साथ ही परिधि पर स्थित , अलक्षित को लक्षित करने की भी बात है। चाहे 1972 के पहले की बात करें या फिर उसके की बात हो , अनुवाद हमेशा दोयम दर्ज़े पर रहा है। परन्तु वाल्टर बेंजामिन और उनसे भी अधिक जाक देरिदा के बाद अनुवाद को देखने का नज़रिया बदल जाता है। पहले साहित्य केन्द्र में था अनुवाद हाशिए पर  था। वह मूल का पिछलग्गू था। लेकिन उत्तर-आधुनिकता के आने के बाद अनुवाद का स्थान बदल गया।

अनुवाद का मुख्य उद्देश्य संप्रेषण है- भावों, विचारों तथा भाषा सौन्दर्य का संप्रेषण। भाव तथा विचार की अभिव्यक्ति भाषा के माध्यम से होती है। भाषा में शब्द होते हैं और शब्दों के अर्थ होते हैं। उत्तर-आधुनिकता में प्रवेश करने का एक रास्ता यह भी रहा कि शब्द तथा अर्थ के संदर्भ में समझ बदली। अर्थ स्थिर नहीं होते। अर्थ संदर्भ के अनुसार तय होते हैं। वे अनिश्चित होते हैं, अनंत होते हैं। अतः स्रोत पाठ के किसी भी शब्द का कोई एक निश्चित अर्थ होता नहीं हैं। अतः यह तय कर पाना कि कौन-सा अर्थ लिया जाए यह बहुत मुश्किल होता है।
पहले अनुवाद का संबंध भाषा विज्ञान से ही था। व्याकरण से था। उत्तर आधुनिक समय में आ कर अनुवाद का संबंध राजनीति, समाज-शास्त्र, संस्कृति अध्ययन तथा विचारधारा से जुड़ गया।
जब हम कहते हैं हैं कि अनुवाद में एक पाठ दूसरे पाठ में, एक भाषा से दूसरी भाषा में स्थानांतरित होता है तो केवल एक भाषा व्यवस्था को दूसरी भाषा व्यवस्था में ही नहीं ले जाते बल्कि एक समाज को दसरे समाज में, एक संस्कृति को दूसरी संस्कृति को स्थानांतरित करते हैं, रूपांतरित करते हैं।
अनुवाद अध्ययन के संदर्भ में कुल तीन पोस्ट मैं भेजूंगी। इस संदर्भ में आप अफने सवाल भी भेज सकते हैं।