जिन खोजा तिन पाइयां

इस ब्लॉग में विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं के उत्तर देने की कोशिश की जाएगी। हिन्दी साहित्य से जुड़े कोर्सेस पर यहाँ टिप्पणियाँ होंगी,चर्चा हो सकेगी।

Wednesday 25 August 2010

1-साहित्य में काव्यशास्त्र का महत्व एवं उपादेयता

(काव्य-शास्त्र के इस कोर्स में हमें काव्य-शास्त्र संबंधी कुछ मूलभूत जानकारी प्राप्त करनी होगी जिस के फलस्वरूप हमने क्लास में विस्तार से चर्चा की है। आपको याद रहे इसलिए कुछ बातें मैं यहाँ दे रही हूँ।)

साहित्य में काव्य शास्त्र का महत्व निर्विवाद है इसमें कोई संदेह नहीं है। जो महत्व व्याकरण-शास्त्र के भाषा के संदर्भ में होता है वही महत्व काव्यशास्त्र का साहित्य के संदर्भ में होता है। अर्थात् जिस तरह व्याकरण भाषा को व्यवस्था देता है, उसके प्रयोग के नियम गढ़ता है, उसे एक सामाजिक पहचान देता है और उसमें विचार के विकास की संभावनाएं खड़ी करने के साथ-साथ सामाजिक विकास के विभिन्न चरणों को भाषाई अभिव्यक्ति देता है। उसी तरह काव्य शास्त्र के महत्व एवं उपादेयता को समझने के लिए पहले हमें कुछ प्राथमिक बातों की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करना पड़ेगा। साहित्य के क्रमशः विकास के साथ-साथ काव्य-शास्त्रीय मापदंडों में भी विकास हुआ है। जिस तरह मध्यकाल तक का काव्य-शास्त्र संस्कृत की परंपरा के अनुसार था, यहाँ तक कि हिन्दी का रीतिकालीन काव्य-शास्त्र भी उसी परंपरा के अनुसार ही रचा गया। रामचंद्र शुक्ल से चलकर नगेन्द्र तक रस-चिंतन की धारा क्षीण अवश्य हुई थी, पर विद्यमान तो थी ही। क्रमशः आधुनिकता के दबाव और पाश्चात्य काव्य-शास्त्रीय चिंतन के प्रभाव में आ कर हिन्दी का साहित्य-शास्त्र अनेक आयामी हो गया।
लेकिन काव्य-शास्त्र के बनने की प्रक्रिया बड़ी रोचक रही होगी। हमें इतनी जानकारी प्राप्त होती है कि आज जिसे हम साहित्य-शास्त्र के नाम से जाने हैं उसके लिए इसके पूर्व कई नाम प्रचलित थे। ये नाम वस्तुतः काव्य शास्त्र के एक शास्त्र के रूप में विकसित होने का भी इतिहास दर्शाते हैं। सबसे पहले एक नाम आता है- काव्य-कल्प। एक संदर्भ इस प्रसंग में यों है कि जब राम के दरबार में लव-कुश पहुँचते हैं तो सभी में कई तरह के लोग बैठे हैं. उनमें से कुछ काव्य-कल्प के ज्ञाता भी थे। इस संदर्भ से यह स्पष्ट हो जाता है कि अपने आरंभिक रूप में काव्य-शास्त्र का एक नाम काव्य-कल्प था। फिर अलंकार-शास्त्र तो लंबे समय तक प्रचलन में रहा। एक नाम काव्य-लक्षण भी मिलता है। राजशेखर ने पहली बार साहित्य-शास्त्र शब्द का प्रयोग किया।
काव्य-शास्त्र के महत्व पर सोचते हुए पहला प्रश्न हमारे मन में यह आता है कि आखिर काव्य-शास्त्र क्या करता है? वह सबसे पहले तो साहित्य के आकलन को वैज्ञानिकता देता है। अब यहाँ फिर एक प्रश्न आता है कि आकलन करना यानी क्या – आकलन से हमारा तात्पर्य है- साहित्य का मूल्यांकन, साहित्य की समझ और साहित्य की उपयोगिता । काव्य-शास्त्र इन तीनों संदर्भों में – यानी साहित्य का मूल्यांकन करने में काव्य-शास्त्र हमारी मदद करता है। वह हमें साहित्य की समझ भी देता है और यह भी बताता है कि कौन सा साहित्य किस दृष्टि से उपयोगी है। जैसे राम-कथा पर रामचरित मानस भी आधारित है, रामचंद्रिका भी और संशय की एक रात भी । पर काव्य-शास्त्र की मदद से हम तीनों का आकलन सही परिप्रेक्ष्य में कर सकते हैं। तभी भक्ति के मापकों से रामचंद्रिका का और छन्द एवं भक्ति के मापकों से संशय की एक रात का मूल्यांकन नहीं करेंगे। काव्य शास्त्र हमें वह विवेक देता है कि हम साहित्य का आकलन ठीक-ठीक कर सकें। क्योंकि काव्य-शास्त्र तथ्यपरक होता है, विश्वसनीय होता है तथा उसकी अपनी एक प्रविधि है- एक मैथेडोलॉजी है, अतः साहित्य के इस आकलन को वैज्ञानिकता प्राप्त होती है।