जिन खोजा तिन पाइयां

इस ब्लॉग में विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं के उत्तर देने की कोशिश की जाएगी। हिन्दी साहित्य से जुड़े कोर्सेस पर यहाँ टिप्पणियाँ होंगी,चर्चा हो सकेगी।

Saturday 25 May 2013

नवागन्तुको,

      आपका एम. ए. हिन्दी  के छमाही  पाठ्यक्रम में स्वागत है। तृतीय वर्ष का परिणाम निकल आया है और आप जब प्रवेश ले चुकें होंगे तब यह पोस्ट देखेंगे। किन्तु अगर आपने पहले इसे देख लिया हो तो आप पहला काम यह करें कि गुजरात युनिवर्सिटी की वेबसाईट पर जाएं। वहाँ डाऊनलोड पर क्लिक करें फिर सिलेबस पर जाएं और एम ए हिन्दी    w e f   from 2012  पर क्लिक करें और पाठ्यक्रम का अभ्यास कर लें। आप यह जान लें कि किस तरह की तैयारी आपको करनी है। आप क्या पढ़ने वाले हैं। पाठ्यक्रम को डाउनलोड  कर के उसे अपने पास उपलब्ध कर लें। 
     
     
    इस वर्ष ब्लॉग  लेखन नियमित हो , ऐसी मेरी कोशिश रहेगी।
 

    आप जितने सक्रीय रहेंगे, उतना ब्लॉग प्रकाशित होगा।

    पहला काम करें अपना ई-मेल अकाऊंट  खोल लें।

     शेष मिलने पर





पुनश्च

कोर्स ४०९ को लेकर आपने में जो सवाल उठाए हैं, उनके संबंध में पहले तो मुझे आपको बधायी देनी चाहिए कि आप अपने पाठ्यक्रम को गंभीरता से लेते हैं। फिर आप अध्ययनशील भी हैं। लेकिन हमें अपना अध्ययन निरंतर पैना बनाना चाहिए। अपने जिन सवालों को उठाया है,उनमें पहला प्रश्न बाणभट्ट के प्रकाशन वर्ष को लेकर था। आप को यह तो पता ही है कि इस उपन्यास को आपको विशेष रूप से नहीं पढ़ना है। जैसे सूरज का सातवाँ घोड़ा इत्यादि। पर हिन्दी उपन्यास में आए विभिन्न मोडों में से एक यह भी है। इस का असर उत्तर आधुनिक समय के उपन्यासों पर देख सकते हैं। बाणभट्ट आत्मकथा नहीं परन्तु आत्मकथनात्मक उपन्यास है, जैसे कि ओम्प्रकाश वाल्मीक के जूठन के विषय में कहा जाता है। फ़र्क यह है कि बाणभट्ट की कथा हजारी प्रसाजी कहते हैं और वाल्मीक की कथा स्वयं कहते हैं वाल्मीक