जिन खोजा तिन पाइयां

इस ब्लॉग में विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं के उत्तर देने की कोशिश की जाएगी। हिन्दी साहित्य से जुड़े कोर्सेस पर यहाँ टिप्पणियाँ होंगी,चर्चा हो सकेगी।

Friday 29 July 2011

विज्ञापन क्र-1

नो मुटापा नो कॉलॉस्ट्रॉल नो टेंशन
अब आ गयी है
आपकी जेब की रेंज में
सुर्लेप बरतनों की पूरी रेंज
समय की बचत स्वास्थ्य
का लाभ

विज्ञापन क्र-2


भाभी मेरी जादूगरनी


पहला सीन

भाभी के साथ मज़ाक़ करने के मूड़ में देवर। बरतन में घी कम


है।


दूसरा सीन
देवर - भाभी मालपुए बनाओ न!

तीसरा सीन
भाभी घी ढूँढ़ती है। घी बहुत थोड़ा है ।


चौथा सीन
देवर का इरादा भाभी की समझ में आ जाता है

पाँचवाँ सीन
देवर भाभी की खिंचाई के लिए तत्पर होता है

छठा सीन
भाभी मालपुए बना कर ले कर आती है

सातवाँ सीन
देवर भौंचक्का, भाभी मुस्काराती है
सुर्लेप तवे का राज़ खोलती है

आठवाँ सीन
देवर कान पकड़ लेता है- भाभी मेरी जादूगरनी


नौवाँ सीन
पति मूछों पर ताव दे कर गर्व से मुस्कुराता है

(फैमिली फोटो- देवर, भाभी, पति, ससुर)
(ये दोनों विज्ञापन बड़े घर की बेटी कहानी के आधार पर निर्मित हैं)

Thursday 28 July 2011

HIN 506
आपने अब तक विज्ञापन वाला लेख पढ़ लिया होगा। आज जिस तरह हमने वर्ग में विज्ञापन निर्माण की बात की उससे आपको यह समझ में आ गया होगा कि यह पूरी प्रक्रिया कितनी रोचक है। इस पूरी प्रक्रिया को अगर हम दुबारा याद करें तो-
सबसे पहले हमने एक कहानी पुस्तकालय में जा कर ढूँढी। निशी ने कुछ कहानियाँ ढूँढ़ी और उन कहानियों में से उसे प्रेमचंद की बड़े घर की बेटी अच्छी लगी। हमने इस कहानी में निहित संकल्पना को कैसे ढूँढ़ा जाए इसे जानने की कोशिश की। इस प्रक्रिया में निशी ने कहानी की मूल बातें बताई।
 आनंदी कहानी की नायिका
 बड़े घर की पुत्री, छोटे घर में ब्याही
 पति बाहर कहीं नौकरी करता है
 घर में ससुर तथा देवर
 देवर ने माँस खाने की इच्छा
 आनंदी ने माँस पकाया
 जितना था सभी घी का उपयोग
 खाने के समय देवर ने दाल में घी माँगा
 घी न होने की बात सुन कर भाभी को लाठी दिखाई
 ससुर से शिकायत की तो देवर का पक्ष लिया
 आनंदी ने बवाल मचाया
 पति के लौटने पर शिकायत
 पति ने घर छोड़ कर कहीं और जाने का निर्णय सुनाया
 आनंदी ने स्थिति को संभालते हुए कहा कि साथ रहने का संस्कार मिला है।
 बड़े घर की बेटी वही होती है जो परिवार को एक रखे।
अब इस कहानी में से आपको संकल्पना ढूँढ़नी है। संकल्पना ढूँढ़ने की प्रक्रिया यह है कि आप देखेंगे कि क्या वस्तु बदल देने से कोई फ़र्क पड़ता है?
 कहानी की नायिका आनंदी आनंदी के स्थान पर सुशीला भी हो सकती है।
 बड़े घर की पुत्री, छोटे घर में ब्याही एक ही स्तर के, अथवा छोटे घर की बड़े घर में
 पति बाहर कहीं नौकरी करता है स्त्री भी नौकरी कर सकती है
 घर में ससुर तथा देवर ससुर तथा देवर बेटे के साथ रह सकते हैं
 देवर ने माँस खाने की इच्छा किसी भीमहँगी चीज़ को खरीदने की बात
 आनंदी ने माँस पकाया हैसियत से अधिक खर्च करना

 जितना था सभी घी का उपयोग महिने की अर्थ-व्यवस्था डगमगा सकती है
 खाने के समय देवर ने दाल में घी माँगा देवर ने पैसे माँगे
 घी न होने की बात सुन कर भाभी को लाठी दिखाई न देने पर भला बुरा कहा
 ससुर से शिकायत की तो देवर का पक्ष लिया ससुर ने बेटे का पक्ष लिया
 आनंदी ने बवाल मचाया आनंदी को आपत्ति हुई
 पति के लौटने पर शिकायत पति से शिकायत
 पति ने घर छोड़ कर कहीं और रहने जाने का निर्णय पिता तथा भाई को घर से निकालने का निर्णय
आनंदी ने स्थिति को संभालते हुए कहा कि साथ रहने का संस्कार मिला है।
बड़े घर की बेटी वही होती है जो परिवार को एक रखे।
अब इस कहानी से जो संकल्पना निकल कर आती है वह यह कि
1- पारिवारिक एकता को टिकाए रखने के लिए छोटी बातों की अपेक्षा महद् मूल्यों की अधिक आवश्यकता है।
2-इस कहानी की मुख्य घटना माँस पकाने में घी के इस्तेमाल की है। अतः घी को ध्यान में रखते हुए आज के संदर्भ में कौन-सा विज्ञापन बन सकता है?
पहली बात को ध्यान में रखें तो इस पर से एक राष्ट्रीय एकता संबंधी विज्ञापन बन सकता है। आपसी भेद भाव मिटा कर एक बने रहना। जाति, धर्म भाषा के भेद भुला कर राष्ट्र को एक बनाए रखना। आपको इस संबंध में कॉपी राइटिंग करनी है। अब आप अपना टार्गेट ऑडियंस देखें। फिर प्रचारात्मक विज्ञापन है तो भाषा का एक अंदाज़ होगा। इस विज्ञापन में कुछ बेचना नहीं है परन्तु मूल्यों की स्थापना करनी है।
दूसरे मुद्दे में - कलह का कारण घी है। आज यूँ भी घी के प्रति लोगों के मन में आशंका है। अतः इस पर से आप किस उत्पाद का विज्ञापन बना सकते हैं ? तो नॉन-स्टिक बर्तन बनाने की कंपनी का। अगर आपको मुद्रित विज्ञापन बनाना है तो कैसे बनाएंगे और दृश्य-श्राव्य माध्यम में बनाना हो तो कैसे बन सकता है।
इसके दो तरीक़े हैं- एक में आप कहानी को भूल जाएं और संकल्पना पर काम करें। दूसरा तरीक़ा यह है कि कहानी को मॉडिफ़ाय करते हुए विज्ञापन बनाएं।
तो अब आप बना कर देखिए। अगली बार हम इसके संभवित कॉपी राईटिंग पर विचार करेंगे।





इस पोस्ट में सेमिस्टर १ तथा सेमिस्टर-३ के छात्रों के लिए एक आवश्यक सूचना है। सेमिस्टर ३ के विद्यार्थियों तथा अध्यापकों के अनुभव से हमने कोर्स ४०१ को थोड़ा व्यवस्थित किया है। इस कोर्स के विषय में तथा कोर्स ५०५ के संदर्भ में कुछ परिवर्तन किया गया है जो यहाँ दिया जा रहा है।
HIN – 401 स्वांतत्र्योत्तर हिन्दी साहित्य का इतिहास
UNIT ONE - हिन्दी साहित्य में इतिहास लेखन
1-1 हिन्दी साहित्य का इतिहास: पुनर्लेखन की समस्याएँ
 आवश्यकता
 साहित्य चेतना का विकास
 नवीन शोध – परिणाम
 हिन्दी का स्वरूप – विस्तार*
 साहित्य की सीमा
1-2 आधार–स्रोत
1-3 इतिहास के क्षेत्र में मौलिकता
 इतिहास, अर्थ एवं स्वरूप*
1-4 - इतिहास दर्शन की रूपरेखा एवं साहित्य का इतिहास दर्शन
 भारतीय दृष्टि कोण
 पाश्चात्य दृष्टि कोण
1.5- हिन्दी साहित्येतिहास की परम्परा और उसके आधार
 काल विभाजन और नामकरण
 नामकरण की समस्याएँ
(सूचना – उपरोक्त पाठ्यक्रम को समझने के लिए 1- हिन्दी का स्वरूप – विस्तार तथा इतिहास अर्थ एंव स्वरूप मुद्दों की मात्र चर्चा करनी हैं प्रश्न नहीं पूछने हैं) इस यूनिट के लिए 'हिन्दी साहित्य का इतिहास – डॉ.नगेन्द्र' की पुस्तक को संदर्भ ग्रंथ के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। )
UNIT TWO – स्वांतत्र्योत्तर हिन्दी कविता
2-1 – प्रयोगवाद
 ऐतिहासिक परिवृत्त
 तार सप्तक (पूर्ण)
 प्रयोगवादी काव्य का घोषणा- पत्र
 नकेन – एक अतिवादी प्रयोग
 प्रयोगवादी काव्य की उपलब्धियाँ
2-2 नई कविता
 काव्यांदलोन की प्रवृति
 ऐतिहासिक आधार
 नई कविता का प्रयोग और प्रतिमान
 सामयिक परिवेश और नयी कविता
 नयी कविता की उपलब्धि और सीमाएँ
UNIT THREE – साठोत्तरी हिन्दी कविता
 कुछ प्रमुख काव्य आंदोलन और साठोत्तरी कविता
 अंतराष्ट्रीय स्थितियाँ और साठोत्तरी कविता
 अनियत कालीन पत्रिकाएँ और साठोत्तरी कविता
 साठोत्तरी कविता की उपलब्धियाँ
 हिप्पी संस्कृति और साठोत्तरी कविता
UNIT FOUR – स्वांतत्र्योत्तर हिन्दी नाटक
4–1 स्वांतत्र्योत्तर हिन्दी नाटककार
 मोहन राकेश
 लक्ष्मीनारयण लाल
 स्वांतत्र्योत्तर हिन्दी नाटक
 अंजो दीदी (उप्रेन्द्रनाथ)
 बिना दीवारों का घर (मन्नुभंङारी)
4-2 प्रयोगशील नाटक और नाटककार
 द्रौपदी (सुरेन्द्र वर्मा )
 खोए हुए आदमी की खोज (विपिनकुमार)
 जगदीशचन्द्र माथुर
 हबीब तनवीर
4 -3 काव्य नाटक
 धर्मवीर भारती का काव्य – नाटक –अंधायुग ।
 दुष्यंत कुमार का काव्य -नाटक – एक कंठ विषपायी
UNIT FIVE - नुक्कड नाटक एवं एकांकी
5- नुक्कड नाटक
 नुक्कङ नाटककार गुरूशरण सिंह
 नुक्कङ नाटककार असगर वजाहत
5.1 –एंकाकी का विकास
 एंकाकीकार रामकुमार वर्मा
 एंकाकीकार उदयशंकर भट्ट
5.2- एकांकी
 सीमा रेखा (विष्णु प्रभाकर)
 यहाँ रोना मना है। (ममता कालिया )
HIN505EC
सेमेस्टर-3 में कोर्स संख्या- 505EC में तुलनात्मक अध्ययन में कंब रामायण तथा रामचरितमानस में से परीक्षा के लिए केवल दो कांड रहेंगे। अर्थात् कंब रामयाण से दो कांड एवं रामचरितमानस से दो कांड। ये दो कांड होंगे- बाल कांड एवं अयोध्या कांड। अर्थात् जिन युनिट्स में तुलना संबंधी अध्ययन करना है तथा टेक्स्ट का अध्ययन करना है उसमें इन्हीं दो कांडों में से प्रश्न पूछे जाएंगे। आप को इन्हीं कांडों की वस्तु तथा महत्व आदि की तुलना करनी है। 7, 4, तथा 3 प्रश्नों के उत्तर इन्हीं कांडों में से पूछे जाएंगे। जहां सैद्धांतिक मुद्दों का अध्ययन करना है तो प्रश्न पाठ्यक्रम में दिए मुद्दों के आधार पर पूछे जाएंगे। इन दोनों ग्रंथो के विषय में विस्तार से जानकारी अपेक्षित है परन्तु परीक्षा के लिए इतना ही हिस्सा तय किया गया है। अध्यापक अपनी तरफ से यह जानकारी दें अथवा विद्यार्थी स्वयं इसे प्राप्त कर सकते हैं।









Sunday 24 July 2011

कल्पना की अवधारणा

सर्जन प्रक्रिया
सेमिस्टर-3 में आपको कोर्स नं 502 में फिर एक बार काव्यशास्त्र पढ़ना है। इस कोर्स के अन्तर्गत आज हम यूनिट-2 की बात करेंगे। इस यूनिट में जिस सामग्री का हमें अध्ययन करना है उसे 'सर्जन-प्रक्रिया' शीर्षक के अन्तर्गत रखा गया है। इसमें शामिल मुद्दे इस प्रकार हैं- कल्पना की अवधारणा, कांट, सहृदय, प्रतिभा- विवेचन, साधारणीकरण, विरेचन, लोक-मंगल। आपने सेमिस्टर-1 में कोर्स 403 के यूनिट 5 में कॉलरिज तो पढ़ा ही होगा अतः आप सबको कल्पना संबंधी उनकी परिभाषा का तो पता ही होगा। आप यह सोच रहे होंगे कि एक बार तो पढ़ लिया, अब इसमें अधिक क्या करना है। इस सेमिस्टर में अब आपको यह समझना होगा कि उपरोक्त मुद्दे (कल्पना आदि) जिनको आपने परिभाषा में जाना था वह काव्य की सर्जनात्मकता में कैसे काम करते हैं।
कॉलरिज के लिए कल्पना शक्ति आकारदायिनी और रूपांतरकारी है। जो कल्पना हमें सौन्दर्यानुभूति की अवस्था तक ले जाती है , वह निर्माणात्मक होती है। उनके अनुसार कल्पना शक्ति संश्लेषणात्मक शक्ति है। असल में कल्पना शक्ति का संबंध मानवीय बोध(understanding) से जुड़ा है। मनुष्य में अगर समझ है तो इसका कारण यही है कि उसमें कल्पना शक्ति है। यह शक्ति तो सब मनुष्यों में होती है। कुछ-कुछ हमारी भावयित्री प्रतिभा के निकट ही समझिए इसे।
जैसा कि आप जानते हैं कि कॉलरिज ने गौण कल्पना को सर्जनात्मकता के लिए अनिवार्य माना है। अर्थात् यह गौण कल्पना शक्ति ही है जिसके कारण कविता रची जाती है। अब सवाल यह है कि 'कविता रची जाती है' से हमारा क्या मतलब होता है। कविता में बाहरी पदार्थ जगत और भीतरी भावों का सम्मिलन, संयोजन अथवा ग्रंथन होता है। My Love is like a red red rose में लाल गुलाब [( बाहरी पदार्थ (वस्तुजगत)] का ग्रंथन भीतरी तत्व, भाव- प्रेम से होता है। अर्थात् कविता बाहर-भीतर का समन्वय है। संग्रथन है। कविता की रचना-प्रकिया में कवि के बाहर का वस्तुजगत उसके भीतर के भाव-जगत के साथ जुड़ता है। यह जुड़ना भी कैसा – जैसे एक दूसरे में इस तरह समाहित हो जाना कि परिचित वस्तु-जगत अपरिचित (नया-सा) बन जाता है और गोपन एवं अजाने भाव-बोध पहचाने-से दृष्टिगोचर होने लगते हैं। अर्थात् अगर कल्पना शक्ति है, तभी यह मिलन, समन्वय संग्रथन आदि होता है। इनके-यानी वस्तु-जगत एवं भाव-जगत के समन्वय, सम्मिलन आदि का क्षण ही सर्जनात्मकता का क्षण है। कॉलरिज अपनी परिभाषा में यह स्पष्ट करते हैं कि किन का सम्मिलन आदि कल्पना-शक्ति द्वारा संभव होता है। विचार का बिम्ब के साथ, सामान्य का विशेष के साथ, मानव-निर्मित का प्रकृति-प्रदत्त के साथ सम्मिलन संग्रथन आदि। यह सूची आपको साहित्य सिद्धांतों के इतिहास संबंधी पुस्तक में मिल जाएगी।
इस बात को हम एक कविता के द्वारा समझ सकते हैः कविता का शीर्षक है- 'एक पीली शाम'

एक पीली शाम
पतझर का ज़रा अटका हुआ पत्ता
शान्त ।
मेरी भावनाओं में तुम्हारा मुखकमल
कृश-म्लान हारा-सा
(कि मैं हूँ वह मौन दर्पण में
तुम्हारे कहीं ....)
वासना डूबी
शिथिल पल में
स्नेह काजल में
लिए अद्भुत् रूप कोमलता
अब गिरा अब गिरा वह अटका हुआ आँसू सान्ध्य तारक-सा
अतल में.......

कॉलरिज जिस कल्पना शक्ति की बात करते हैं उसे इस कविता के माध्यम से जब समझने का उपक्रम करते हैं तो पाते हैं कि कविता के आरंभ में पतझर की पीली शाम में किसी पेड़ पर अटके हुए किसी पत्ते का चित्र कवि हमारे सामने रखते हैं। यहाँ शाम वस्तु-जगत है। पर यह कोई भी या हर कोई शाम नहीं है। यह एक पीली शाम है। सामान्य शाम को विशेष शाम में बदलने का काम कल्पना करती है। इस शाम रूपी वस्तु-जगत को कविता में आगे जा कर एक विशेष व्यक्तिगत संदर्भ में रूपांतरित करना है अतः यह कोई एक विशेष शाम है। यहाँ ज़रा शब्द पर भी ध्यान दें क्योंकि यह अब गिरा अब गिरा जितना ही अटका हुआ है। अब यह पीली पतझर की शाम जो वस्तुजगत , पदार्थ है उसे कवि अपने हृदय में स्थित किसी व्यक्ति के स्मरण से जोड़ता हैः मेरी भावनाओं में तुम्हारा मुखकमल। कवि को शाम देख कर याद नहीं आई है , परन्तु कृश-म्लान मुखकमल कवि के भाव-जगत का स्थायी सदस्य/भाव ही है, गोया। वह मुख जो किसी समय कमल की तरह था अब कृश-म्लान-हारा-सा है। कल्पना शक्ति के बल पर ही यह संभव होता है कि अभी तक शाम वस्तु-जगत थी, अब कृश-म्लान चेहरा वस्तु-जगत बन जाता है और नायिका के मौन-दर्पण में रहा कवि का प्रतिबिंब भाव-जगत बन जाता है। कवि को लगता है कि उनके हृदय के भाव-जगत में नायिका का जो चेहरा है, उस नायिका के हृदय में स्वयं उन्हीं का प्रतिबिंब है। अर्थात् प्रेमिका के हृदय के मौन-दर्पण में स्वंय कवि या नायक की छवि। इससे इस कविता की सर्जनात्मकता के लिए आवश्यक कल्पना शक्ति द्विगुणित हो जाती है। हृदय में रहे नायिका के भाव-चित्र को शाम के साथ जोड़ना और नायिका के हृदय में अपनी छवि को पिघलाना , यूँ शाम को देख कर कृश-म्लान नायिका के प्रति रहे उदासी के भाव को कवि इसलिए इतने कम स्पेस में अत्यन्त सुगठित तरीके से रख पाया है क्योंकि उनमें सृजन के लिए अत्यन्त अनिवार्य ऐसी कल्पना शक्ति बहुत गहरी है।
पीली शाम में ज़रा अटका हुआ पत्ता के चित्र को कृश-म्लान यानी बीमार और इसीलिए पीले नायिका के चेहरे पर अटके हुए आँसूं को जोड़ने का काम भी कल्पना-शक्ति के द्वारा होता है। अगर पीली शाम है तो आसमान में तारा भी है। इस तारे को आँसूं से और इन दोनों को पीले पत्ते से कवि जोड़ता है। अब आपके सामने यह चित्र उपस्थित होगा- प्रेम से भरे कवि के हृदय में स्थित नायिका का उदास-पीला चेहरा जिस पर एक अटका हुआ आँसू जो ज़रा से अटके हुए पत्ते की तरह है जो अतल में गिरते तारे के समान है । नायिका भी शीघ्र ही अतल में गिरने ही वाली है- यह संकेत भी मिलता है। अब गिरा अब गिरा की स्थिति में आँसू-पत्ता-तारा । बाहर उदास शाम और भीतर उदास पीला चेहरा। आँसू भीतर और तारा-पत्ता बाहर। भावनाओं के सैलाब में वासना का स्नेह काजल में डूबना यानी भावनाओं की बेतरतीबी को व्यवस्था एवं तरतीबी देना। अभिव्यक्ति की व्यवस्था और भावावेगों को संतुलित करने का काम भी कल्पना शक्ति ही करती है। जिस कविता में यह संतुलन जितना अधिक होगा, उतनी ही कल्पना-शक्ति दृढ़ एवं समृद्ध है, ऐसे माना जा सकता है। कल्पना शक्ति के अभाव में भावावेग प्रलाप बन जाते हैं और कल्पना शक्ति के कारण वे कविता बनते हैं।
इस तरह आप देख सकते हैं कि कल्पना शक्ति सृजन प्रक्रिया में किस तरह काम करती है।