जिन खोजा तिन पाइयां

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Wednesday 1 December 2010

कविता का जादू

HIN405

किसी भी कवि की श्रेष्ठता का मापदंड उसकी कविता ही होती है। रवीन्द्रनाथ हमारे समय के बड़े कवि हैं इस बात के लिए भी प्रमाण तो उनकी कविता ही है। उनकी श्रेष्ठता के अन्य सारे मापदंड या कारण अगर एक ओर रख दिए जाएं तब भी वे हमारे समय के उतने ही श्रेष्ठ कवि माने जाएंगे जितने पूर्व-काल में हुए कालिदास आदि माने जाते हैं। रवीन्द्रनाथ को मूल में पढ़ने पर बंगाली भाषा का सौन्दर्य अवश्य ही उजागर होता होगा पर उन्हें अनुवाद में पढ़ने पर भी कविता और कविता के माध्यम से मनुष्य तथा मनुष्य-जीवन के सौन्दर्य का जो पक्ष उजागर होता है वह अपने आप में अद्वितीय है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर हमें जानना हो कि यह जो हमारे चारों ओर पल-छिन फैला मनुष्य एवं प्रकृति - जगत है, यह जो हमारे भीतर भावनाओं का अनवरत उमड़ता हुआ सैलाब है वह कविता का रूप-आकार कैसे ग्रहण करते हैं तो अपने समय में हमें रवीन्द्रनाथ जैसे कवियों के पास जाना पड़ता है। जैसे कोई जादूगर हमारी ही आँखों के सामने तरह-तरह के जादू के खेल करता है और हमें आश्चर्य में डालता है ठीक उसी तरह रवीन्द्रनाथ भी अपनी कविताओं से हमें आश्चर्य में डालते हैं। लगातार डालते हैं। ट्रिक जान लेने पर जादू का प्रभाव क्रमशः कम हो जाता है पर रवीन्द्रनाथ की कविताओं का जादू समझ लेने पर भी प्रभाव में कोई कमी नहीं आती। किसी भी कविता में कल्पना का सौन्दर्य क्या होता है इस बात को समझना हो तो भी रवीन्द्रनाथ जैसे कवि ही हमारी मदद कर सकते हैं, करते हैयह हमें उनकी कविताएं पढ़ कर लगता है। हमारे अपने निराला हमे अधिक समझ में आते हैं जब हम रवीन्द्रनाथ को समझ लेते हैं। निराला अगर उनसे प्रभावित थे, तो इससे सहज और स्वाभाविक कोई घटना नहीं हो सकती थी ,ऐसा रवीन्द्रनाथ को पढ़ कर हमें लगता है। अथवा जीबनानंददास को (रणनीति के तहद्) उनका विरोध करके फिर उनका महत्व स्वीकारना पड़ा- अगर इस तथ्य को हम जस-का-तस स्वीकार भी कर लें, तब भी आश्चर्य की बात नहीं लगनी चाहिए क्यों कि इतने वर्षों बाद इतिहास में इतने सारे कवियों को अपने सामने पा कर भी रवीन्द्रनाथ की श्रेष्ठता निर्विवाद बनी हुई है।
रवीन्द्रनाथ की कविता के अनेक आयाम हैं। पर उनकी कविता में सौन्दर्य तथा मानवीयता का पक्ष इतना प्रबल है कि उसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है। यही उनकी कविताओं पर आखिरी टिप्पणी भी हो सकती है। उनकी कविताओं में कुछ विशिष्ट संरचनाएं हैं जिनको जान लेने पर यह तुरन्त समझ में आता है कि वस्तुकाव्य-वस्तु में कैसे परिवर्तित होती है। उदाहरण के लिए उनकी निर्झर का स्वप्न-भंग अथवा उर्वशी अथवा अहिल्या जैसी कविताओं को अगर देखा जाए