जिन खोजा तिन पाइयां

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Monday 9 August 2010

भारतीय साहित्य

भारतीय साहित्य- सैद्धान्तिक पक्षविषय-प्रवेश के लिए मार्गदर्शनभारतीय साहित्य के सैद्धांतिक पक्ष में हमें तीन मुद्दे पढ़ने हैं-
v अवधारणा
v स्वरूप
v अध्ययन की समस्याएँ
आइए, इसे कैसे पढेंगे, इस पर थोड़ा सोच लें। सबसे पहले अवधारणा की बात-


1-अवधारणाअवधारणा से हमारा तात्पर्य है कि किसी भी शब्द/संज्ञा के विषय में हमारी क्या धारणा हो सकती है। या उस संज्ञा/शब्द में किस अर्थ की धारणा छिपी हुई है/ संगोपित है। भारतीयता की अवधारणा को समझने के लिए हमें पहले समझना होगा कि-
v भारतीय का तात्पर्य
इसके लिए हमें कुछ आधारबिन्दुओं का सहारा लेना होगा। वे आधार बिन्दु हैं-
-आधार-बिन्दुv -भौगोलिक
v -सांस्कृतिक- धार्मिक मानववाद : श्रेयस की भावना से मंडित मानव गरिमा की स्वीकृति, सहिष्णुता, सम-भाव, आस्तिक बुद्धि, सद्भाव
v -वैचारिक- भेद में अभेद अनेकता में एकता
फिर हमें भारतीय से होने वाला अर्थबोध के विषय पर सोचना होगा।

भारतीय वही है जिसने-
2. उपरोक्त को आत्मसात् कर लिया है।
इसके बाद हम भारतीय साहित्य की चर्चा आरंभ करेंगे। भारतीय साहित्य की संज्ञा सबसे पहले किसने प्रयुक्त की। उसका इतिहास क्या है, इन सारी बातों की चर्चा इसके अन्तर्गत की जा सकती है।
स्वरूप
भारतीय साहित्य किसे कहा जाए, इसकी चर्चा यानी भारतीय साहित्य के स्वरूप की चर्चा।
अनेक भाषों में लिखा हुआ एक भावधारा विचारधारा परंपरा सौन्दर्यशास्त्रीय अवधारणाओं को अभिव्यक्त करने वाला साहित्य- यानी भारतीय साहित्य।
1) वे मुद्दे जो इसे एक बनाते हैं-
v प्रस्थान-त्रयी( हजारी प्रसाद द्विवेदी) रामायण- महाभारत- गीता
v आधुनिक भाषाओं के विकास का संदर्भ ।
v सांस्कृतिक सातत्य ।
v हमारी साहित्यिक एवं भाषाई ही नहीं अपितु राजनैतिक एवं दार्शनिक और धार्मिक की साझा संस्कृति।
v अंग्रेज़ी का प्रभाव ।
v अनुवाद ।
v साहित्यिक स्वरूपों की समानता ।
v भारतीय साहित्य में द्विभाषिता एवं अनेक भाषिता की उपस्थिति ।

अध्ययन की समस्याएं
1.भाषाओं की जानकारी का अभाव तथा उसके प्रति रूचि का भी अभाव ।
2. अनुवाद की अल्पता की समस्या ।
3. अनूदित होने के कारण मूल कृति की भाषा तथा शिल्प की जानकारी का अभाव ।
4. अपरिचय (अन्य भाषा तथा साहित्य का) ।
5. विभिन्न भाषाओं के साहित्य के इतिहास की सभी/ अधिकांश भाषाओं में अप्राप्यता ।
6. संकुचित दृष्टिकोण का उदय एवं राष्ट्रीय भावना का क्रमशः तिरोधान ।
7. ग्लोबलाइज़ेशन के फलस्वरूप दूसरे के प्रति संवेदनहीनता की उपस्थिति ।

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